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बौद्ध धर्म-दर्शन एवं सामाजिक न्याय * 81 भिक्खुणियों के नियम में बढ़ोतरी कर दी तथा भिक्खुणियों को भिक्खुओं के लगभग समान अधिकार दिया।
इन भिक्खुणियों के अतिरिक्त गृहस्थ धर्म पालन करने वाली नारियों के संबंध में पालि पिटक साहित्य में कुछ उदाहरण मिलते हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि बौद्ध धर्म नारियों को न्याय दिलाने का पक्षधर था।
तथागत ने बताया है कि एक पुरुष (पति) को स्त्री (पत्नी) के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। सिगालोवाद सुत्त ने इसका विश्लेषण इस प्रकार किया कि एक पति को पत्नी का सत्कार (सम्मान) करना चाहिए, उसके प्रति आदर का भाव रखना चाहिए अर्थात् कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए, पत्नीव्रत अर्थात् अतिचार (पर-स्त्री गमन आदि) नहीं करना चाहिए उसे अधिकार अर्थात् ऐश्वर्य प्रदान करना चाहिए तथा उसे अलंकार प्रदान करना चाहिए। स्त्री ऐसे पुरुष को प्यार करती है तथा उसके सभी कार्य अच्छी तरह करती है वह उसके तथा अपने मायके के सभी संबंधियों का आतिथ्य करती है, वह अतिचारिणी नहीं होती है अर्थात् पतिव्रता होती है तथा अपने तमाम कर्तव्यों को बड़ी दक्षता से पूरा करती है।3।
तत्कालीन समाज प्रायः सोने-चांदी के थोड़े से टुकड़ों के बदले शरीर विक्रय के कर्म को हेय दृष्टि से देखता था। इसे नीच कर्म की संज्ञा दी गई थी।24 अर्थात् वेश्या कर्म को समाज में सम्मान का स्थान कदापि नहीं दिया गया। परंतु तथागत ने 'अम्बपाली', जो एक गणिका थी, का भोजन भिक्खुसंघ के साथ स्वीकार किया।25 बाद में उसी अम्बपाली को भगवान ने भिक्खुणी संघ में शामिल होने का आदेश दिया, जिसने कालांतर में निर्वाण प्राप्त किया। इस तरह हम देखते हैं कि तथागत ने समाज में हेय दृष्टि से देखे जाने वाली महिलाओं के लिए भी संघ का द्वार खुला रखा। तथागत ने भिक्खुओं एवं भिक्खुणियों के लिए विधि-नियमों में भले ही थोड़ा-बहुत अंतर किया, परन्तु धर्म को जानने अर्थात् शिक्षा के अधिकार में किसी प्रकार की कटौती नहीं की, चाहे वह भिक्खु हो, भिक्खुणी हो, श्रावक हो या श्राविका हो। तथागत ने व्यवस्था की थी कि महीने में दो बार संघ उपोसथ करे, जिसमें तत्कालीन समाज के सामान्य जन (चाहे वह बौद्ध धर्म का पालन करता हो या न करता हो) शिक्षा ग्रहण करते थे।
इस प्रकार स्पष्ट है कि तथागत ने समाज में नारियों को न्याय दिलाने के अनेक प्रकार के कार्य अप्रत्यक्ष रूप से किए तथा अपने उपदेशों में ऐसे अनेक विधानों को बताया जिससे नारियों को पुरुषों के बराबर समाज में अधिकार मिल सकें। संघ के
23. दीघ निकाय, महापरिनिब्बान सुत्त 3.8 24. जातक, 3 पृ. 59-60 25. दीघ निकाय 2.3
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