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________________ 80 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला प्रकार इस अंधेरी रात में, इस कूड़ा कचरा भरे संसार में बुद्ध शिष्य भी प्रकाशित हो सकता है। तीसरा उदाहरण सोपाक तथा सुप्पिय अछूतों को दी गई धर्म-दीक्षा है। श्मशान रक्षक के पुत्र सुप्पिय तथा पाले गए पुत्र सोपाक को तथागत ने संघ में प्रवज्या दी तथा धर्म और विनय की शिक्षा दी। इसी प्रकार सुमंगल (किसान), छन्न (कुम्हार) आदि को उनकी नीच जाति का खयाल किए बिना संघ में प्रविष्ट कर लिया। साथ ही सुप्रबद्ध नामक कुष्ठ रोगी को भी धर्म दीक्षा दी। इसी प्रकार. तथागत ने अंगुलिमाल नामक डाकू, राजगृह के एक आवारा व्यक्ति तथा सैंकड़ों अपराधी किस्म के व्यक्तियों को भी संघ में दीक्षित किया। तत्कालीन समाज की एक अमानवीय प्रथा - दासप्रथा का उल्लेख पालि पिटक साहित्य में मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि उच्च वर्गीय लोग बड़ी संख्या में दास रखना पसंद करते थे तथा उनके साथ खामियों द्वारा अति क्रूर व्यवहार किया जाता था। भगवान बुद्ध ने दीघ निकाय के ब्रह्मजाल सुत्त तथा सामञफलसुत्त में शील का विश्लेषण करते हुए कहा था कि वे स्त्री और कुमारी, दास और दासी ग्रहण करने से विरत रहते हैं। इससे स्पष्ट है कि तथागत इस प्रथा के खिलाफ थे। बौद्ध ग्रंथों में दासता से मुक्त होने के कतिपय उपायों का उल्लेख मिलता है, जिनमें पहला उपाय संन्यास ग्रहण करना है। नारी के प्रति तथागत के विचार समाज की आधी जनसंख्या अर्थात् नारी को भगवान बुद्ध ने किस प्रकार सामाजिक न्याय दिलाने का प्रयास किया, इसका विश्लेषण भी आवश्यक है। नारी को पुरुष के समान अधिकार देने के विषय में समस्त विश्व के संन्यासी विरुद्ध रहे हैं। जिन धार्मिक संस्थाओं में वैराग्य की प्रमुखता है, वहाँ स्त्रियों की उपस्थिति से पुरुष की आध्यात्मिक साधना में व्यवधान होने की संभावना की उपेक्षा नहीं की जाती है। नारी जाति की प्रव्रज्या के अधिकार से वंचित रहने का एक प्रमुख कारण यह प्रतीत होता है कि पुरुष अपनी दुर्बलताओं का आरोप स्त्री के दुश्चरित्र पर करता रहा है। अतः संन्यासी को नारी से दूर रहकर लक्ष्यसिद्धि में सफलता दिखती है। विनयपिटक के उल्लेख के आधार पर लोगों द्वारा कहा जाता है कि भगवान बुद्ध नारी जाति को भिक्ख धर्म की दीक्षा देने के विरुद्ध थे, किन्तु यह पूर्णतः सत्य नहीं है। भगवान ने स्त्रियों के प्रवेश की अनुमति आनन्द की याचना पर दे दी, लेकिन 21. भगवान बुद्ध और उनका धर्म, अनुवादक-आनन्द कौसल्यायन, पृ. 159-163 22. दीघ निकाय 1.1,1.2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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