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बौद्ध धर्म-दर्शन एवं सामाजिक न्याय * 79 . तथागत ने मथुरा के राजा अवन्तिपुत्र को उपदेशित करते हुए कहा, चारों वर्ण चोरी, हिंसादि कुकर्म भी कर सकते हैं और साथ ही नरक भी भोग सकते हैं। इस तरह चारों वर्ण समान हो जाते हैं। और यदि शूद्र भी कल्याणधर्मा हो, शील ग्रहण करे तो उसकी शूद्र संज्ञा समाप्त हो जाती है तथा उसकी संज्ञा श्रमण हो जाती है। उन्होंने चारों वों को इस दृष्टि से समान कहा है, क्योंकि कोई भी वर्ण उत्तम गुणों को धारण कर ऊपर उठ जाता है और निम्न गुणों को धारण करने पर अपने वर्ण से पतित होकर नीचे गिर जाता है। शूद्र ब्राह्मण बन सकता है तथा ब्राह्मण शूद्र बन सकता है। बुद्ध ने सभी को स्वावलम्बी बनने का उपदेश दिया।18
तथागत ने कहा है कि कोई भी धर्म मानव का सद्धर्म तभी हो सकता है जब वह बुरी आदतों के त्याग की शिक्षा दे। पांच बुरी बातें यथा-प्राणी हिंसा, चोरी, व्यभिचार, झूठ और मद्य सेवन का व्यक्ति को त्याग कर देना चाहिए।
तत्कालीन समाज में शूद्रों तथा अस्पृश्य वर्गों को बहुत ही हेय दृष्टि से देखा जाता था। परन्तु भगवान ने शूद्र के निम्न-स्तर को ऊपर उठाने का प्रयास किया। इसके प्रमाणस्वरूप विनयपिटक के संघभेदक-स्कंधक में उपालि द्वारा प्रव्रज्या ग्रहण का उदाहरण है। तथागत के अनुपिया (मल्लों को निगम) में विहरते समय शाक्य गणराज्य के सात लोग (भद्दिय, अनुरुद्ध, आनन्द, भृगु, किम्बिल, देवदत्त, उपालि) प्रव्रज्या के लिए पहुँचे। तथागत द्वारा पहले शाक्यों के अनुरोध पर उपालि (शाक्यों के नापित) को प्रव्रज्या दी गई ताकि उनके मित्र, जो पहले उससे सेवा करवाते रहे हैं, उपालि का (वरिष्ठता के कारण) अभिवादन, प्रत्युपस्थापन (सम्मानार्थ खड़ा होना), हाथ जोड़ना आदि करते रहें, जिससे उनके उच्च कुल के होने का अभिमान मर्दित हो।' उपालि ने संघ में प्रवेश कर शीघ्र ही धर्म-विनय को सीख लिया तथा कालांतर में विनयघरों की श्रेणी में प्रथम स्थान पाया तथा प्रथम संगीति के समय विनय का संगायन मुख्य रूप से 'उपालि' द्वारा ही किया गया था। तत्कालीन संघ के अनेक नियम तथागत ने उपालि के अनुरोध पर बनाए थे, यथा - चोरी-छिपे वस्त्र पहनने वालों को उपसम्पदा नहीं देना आदि। संदेहयुक्त भिक्खु की जांच उपालि द्वारा ही होती थी।
- दूसरा उदाहरण सुणीत नामक भंगी को दी गई धर्मदीक्षा से प्राप्त होता है। सुणीत राजगृह का निवासी था तथा परम्परागत नीच पेशा (सड़कों पर फेंके गए कूड़े-कचरे को साफ करना) के द्वारा जीविकोपार्जन करता था।20 राजगृह में ही सुणीत को इस तरह कार्य करते देख कर तथागत ने उसे संघ में प्रव्रजित किया तथा कहा कि जिस प्रकार रास्ते पड़े किसी कूड़े-कचरे के ढेर पर एक सुंगधित कमल उग सकता है, उसी 18. दीघनिकाय 3.11 19. विनय पिटक, राहुल सांकृत्यायन, पृ. 477 20. थेरगाथा, सुणीत थेरो, 12वां निपात
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