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6 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला समता में, तृष्णा के दौर्बल्य में हेतु स्वीकार किया है तथा उसे सामाजिक समता का आधार माना है। सामाजिक समता का पौधा करुणा और मैत्री की उर्वरा भूमि में पैदा होता है। सामाजिक समरसता के लिए मैत्री अनिवार्य भावभूमि है। मैत्री और करुणा की सम्यक् क्रियान्विति से समाज में समता, प्रेम, सहयोग और शान्ति का विस्तार होता है। डॉ. कमला जैन, दिल्ली ने मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा-इन चार ब्रह्मविहारों को मानव मनोविज्ञान को सकारात्मक एवं उत्कृष्ट बनाने के लिए उपयोगी प्रतिपादित किया है। डॉ. श्वेता जैन के आलेख में साम्प्रदायिक विद्वेष के निवारण एवं सद्भाव के स्थापन की दृष्टि से बौद्ध चिन्तन का महत्त्व निरूपित हुआ है। उन्होंने साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए संवैधानिक उपायों और आन्तरिक परिवर्तन के उपायों की चर्चा की
डॉ. औतारलाल मीणा ने सामाजिक न्याय के लिए तीन प्रमुख स्तम्भों स्वतंत्रता, समानता और बन्धुता की चर्चा बौद्ध धर्म-दर्शन के परिप्रेक्ष्य में करते हुए उन्हें सोदाहरण पुष्ट किया है। डॉ.मीणा ने शूद्रों और नारी के उत्थान के सन्दर्भ में भगवान् बुद्ध के विचारों से अवगत कराया है। डॉ. एस.पी. गुप्ता ने भी सामाजिक न्याय के . परिप्रेक्ष्य में बुद्ध के दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला है, किन्तु उनका मन्तव्य है कि बुद्ध पूरी तरह से जाति-व्यवस्था एवं लिंग भेद की मान्यताओं से परे नहीं थे। उनके अनुसार बुद्ध नैतिक सुधार पर अधिक ध्यान दे रहे थे, किन्तु सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध में उनका चिन्तन समुचित स्वरूप ग्रहण नहीं कर पाया। डॉ. निहारिका लाभ, जम्मू ने वैदिक नारी की स्थिति का निरूपण करने के पश्चात् बौद्ध धर्म में उसके उत्थान हेतु किए गए प्रयत्नों से परिचित कराया है। बुद्ध ने भिक्षुणी संघ की स्थापना की तथा अनेक पीड़ित नारियों को थेरी के रूप में मुक्ति की राह दिखायी।।
डॉ. वैद्यनाथ लाभ, जम्मू ने वर्तमान की ज्वलन्त समस्या आतंकवाद के समापन हेतु बुद्ध के विचारों का सार प्रस्तुत किया है। बुद्ध के अनुसार वैर को वैर से शान्त नहीं किया जा सकता, अपितु, मैत्री और करुणा की भावना के द्वारा आतंकवादियों के आक्रोश को शान्त कर उनके मनों को बदलना ही सही उपाय है। विश्व में शान्ति की स्थापना किस प्रकार सम्भव है, इस विषय पर डॉ. हेमलता जैन ने विसुद्धिमग्ग के आधार पर चर्चा की है। डॉ. जैन ने अपने आलेख में विश्व शान्ति हेतु नौ उपाय बताए
बुद्ध के वाङ्मय में प्रजातान्त्रिक मूल्य प्राप्त होते हैं, इसका निरूपण डॉ. विजयकुमार जैन, लखनऊ के आलेख में हुआ है। "बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय" प्रसिद्ध वाक्य में प्रजातन्त्र की नींव दिखाई पड़ती है। पालि-ग्रन्थों में शाक्य, कोलिय, लिच्छवी आदि गणतन्त्रों का उल्लेख मिलता है। संघ में प्रव्रज्या देने के पूर्व भिक्षु-संघ की स्वीकृति लेना, भिक्षुओं के द्वारा अपने-अपने दोषों का वर्णन कर दण्ड प्राप्त करना,
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