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________________ पुरोवाक् 7 संगतियों के माध्यम से बुद्ध वचनों का संग्रह आदि बौद्ध धर्म के प्रजातान्त्रिक स्वरूप को प्रकट करते हैं। दीघनिकाय के महापरिनिव्वाण सुत्त में जिन सात अपरिहानीय धर्मों का निरूपण है, वे पूर्णत: प्रजातान्त्रिक स्वरूप को प्रकट करते हैं। आधुनिक विश्वविद्यालयीय शिक्षा में बौद्ध धर्म की शिक्षा का समोवश क्यों आवश्यक है, इसका प्रतिपादन डॉ. हेमलता बोलिया, उदयपुर ने अपने चिन्तनपरक आलेख में किया है। बौद्धधर्म अपनी मानवीय विशेषताओं के कारण ही विश्व के अनेक देशों में फैला है। डॉ. सत्यप्रकाश दुबे ने "अश्वघोष के महाकाव्यों की प्रयोजनवत्ता" आलेख में बुद्धचरित एवं सौन्दरनन्द महाकाव्यों के आधार पर सांसारिक भोग-विलासों की नश्वरता तथा प्रज्ञा, शील और समाधि की उपयोगिता को स्पष्ट किया है। डॉ. यादराम मीना ने सौन्दरनन्द महाकाव्य के आधार पर जीवनोत्थान के कपितय सूत्रों का निर्देश किया है। डॉ. प्रभावती चौधरी के आलेख में प्राणातिपात - विरमण आदि पंचशीलों की प्रांसगिकता प्रतिपादित की गई है। उन्होंने जैन स्रोतों के आधार पर भी पंचशीलों के अतिचारों का निरूपण किया है। आचरण की शुद्धता, अकुशल कर्मों के त्याग और कुशल कर्मों के आधान से ही सम्भव है। डॉ. चौधरी ने पण्डित जवाहरलाल नेहरू द्वारा अपनाए गए पंचशील को शान्तिपूर्ण अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों एवं वैश्विक सद्भावना के लिए उपयोगी बताया है।. " विपश्यना एवं मानव मनोविज्ञान" विषयक आलेख में डॉ. चन्द्रशेखर ने कहा है कि कम्प्यूटर, नेनो तकनीकी एवं जीन तकनीकी के प्रयोग के साथ इन्द्रियों की शक्ति का विस्तार एक नये मानसिक एवं जैविक पर्यावरण की रचना करने में संलग्न है, जो हमारे व्यक्तिगत एवं सामूहिक चेतन को ऐसी परिस्थितियों में ला देगा, जिसके समाधान के लिए आज का मनोविज्ञान न तो सक्षम है और न ही उपयोगी सिद्ध हो सकेगा। बौद्ध दर्शन में मन एवं मनोविज्ञान पर जिस गहनता से अध्ययन किया गया है, वह भावी संकट से मानव को उबार सकता है। आज विश्वविद्यालयों एवं उच्च अध्ययन केन्द्रों में विपश्यना और बौद्ध मनोविज्ञान के अध्यापन की महती आवश्यकता है। डॉ. दीपमाला ने शमथ और विपश्यना के माध्यम से बौद्ध योग के विभिन्न पहलुओं की चर्चा की है तथा कहीं कहीं पातंजल योगसूत्र से भी उसकी तुलना की है। भारतीय कला एवं संस्कृति को भी बौद्ध धर्म-दर्शन का महान् योगदान रहा है। डॉ. रेणु शर्मा एवं ऋचा शर्मा के आलेख बौद्ध कला के महत्त्व को उद्घाटित करते हैं। डॉ. रेणु शर्मा ने आधुनिक कला के विकास में बौद्ध भित्ति चित्रों के प्रभाव का आकलन किया है। बौद्ध कला के विकास की एक रूपरेखा का भी बोध डॉ. शर्मा के आलेख से होता है। ऋचा शर्मा ने बौद्ध धर्म एवं बौद्ध कला के पारस्परिक अन्तः सम्बन्धों और उनके पारस्परिक अवदानों की बड़े व्यवस्थित रूप में चर्चा की है। इस - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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