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________________ बौद्ध धर्म-दर्शन एवं सामाजिक न्याय 77 के रूप में प्रश्न पूछा, जिसका अर्थ है - " अन्दर भी उलझन हैं बाहर भी उलझन है। यह जनता उलझन में जकड़ी हुई है । अत: हे गौतम! मैं आपसे पूछता हूँ कि कौन इस उलझन को सुलझा सकता है ?" भगवान ने दूसरी गाथा के द्वारा इसका उत्तर दिया, . जिसका अर्थ है - "शील में प्रतिष्ठित होकर प्रज्ञावान मनुष्य जब समाधि और प्रज्ञा की भावना करता है तो इस प्रकार उद्योगी और ज्ञानवान भिक्खु उलझन को सुलझा देता है । " बड़े-बड़े ऋषि जो वर्ण- संकर और मिश्रित जाति के थे, शील के कारण उनकी पूजा ब्राह्मण भी करते थे, यथा वशिष्ठ की माता वेश्या थी, व्यास का जन्म धीवर लड़की के गर्भ से हुआ था और पाराशर चाण्डाल कन्या की संतान थे, फिर भी वे शील के कारण पूज्य थे 1 शील के महत्त्व को बतलाते हुए तथागत ने कहा है कि शीलवान पुरुष सभी दिशाओं को सुवासित करता है जबकि फूल, चन्दन, तगर आदि की गंध वायु के विरुद्ध नहीं जाती है। चन्दन, तगर आदि की जो गंध है वह अल्प है, परन्तु जो सदाचारी मनुष्यों की गंध है, वह उत्तम गंध देवताओं में फैलती है । ' बौद्ध धर्म में उल्लिखित चार वर्णों का आधार शील ही था । ब्राह्मण के संबंध में तथागत की धारणा स्पष्ट है। वे कहते हैं कि केवल ब्राह्मण माता की योनि से उत्पन्न हुए मनुष्य को मैं ब्राह्मण नहीं कहता तथा जो भोगवादी (ब्राह्मण) तथा संग्रह करने वाला हो, उसे भी मैं ब्राह्मण नहीं मानता।" तथागत के अनुसार ब्राह्मण होने के लिए अनेक गुण हैं, जिनका वर्णन धम्मपद के 'ब्राह्मण वग्गो' में करते हुए कहा गया है कि जो तृष्णा रहित, कामना रहित, दोनों धर्मों में पारंगत, निर्भय, अनासक्त, ध्यानी, रजोगुण रहित, चित्तमल रहितं, कृतकृत्य, स्थिर आसन तेजस्वी, पाप का त्याग करने वाला, समता का आचरण करने वाला, प्रिय वस्तु से मन को दूर करने वाला, अहिंसक संयत (काय, वाणी एवं मन से), फटे-पुराने वस्त्र धारण करने वाला, कृश, क्रोध रहित, क्षमावान, प्रज्ञावान, मेधावी, मार्ग-अमार्ग का ज्ञाता, रागरहित, द्वेषरहित, मोहरहित, अचौर्ययुक्त, लोक-परलोक से आशा नहीं करने वाला, शोकरहित आदि अनेक विध गुणों से सम्पन्न हो, उसे ब्राह्मण कहा जाता है। जटाओं से, गोत्र और जन्म से मनुष्य ब्राह्मण नहीं होता है ।" 11 बुद्ध युग में ब्राह्मणोचित गुणों से युक्त हो विचरण करने वाला ब्राह्मण दिखाई नहीं देता था।'± इन्हीं कारणों से बुद्ध ने ब्राह्मणों को दीन कहा है । ब्राह्मणों में ब्राह्मणोचित - गुणों के लोप हो जाने पर भी वे ब्राह्मण ही कहलाना चाहते थे, जिसके कारण जन्म के 9. धम्मपद गांथा संख्या 54, 56 10. धम्मपद गाथ संख्या 396 11. धम्मपद "ब्राह्मण वग्ग” 12. सुत्तनिपात, ब्राह्मणधम्मिक सुत्त 2.7 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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