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________________ बौद्ध धर्म-दर्शन एवं सामाजिक न्याय * 75 धारणाएँ रूढ होती गई और पेशे वंशानुगत होते गए। ब्राह्मण युग आते-आते मनुष्य के सामाजिक जीवन में जातिभेद संबंधी धारणाओं की जड़ें इतनी गइराई तक प्रविष्ट हो गई कि देवगण भी चतुर्वर्ण में विभाजित माने जाने लगे। बुद्ध युग आते-आते जाति-भेद अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गया। जाति के अनुसार ऊँच-नीच की भावना अति प्रबल हो गई। ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों ही अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए प्रयत्नशील थे। इन दोनों वर्गों में श्रेष्ठतर कहलाने की होड़ सी थी। मधुर अवन्तिपुत्र को हम यह कहते हुए पाते हैं कि ब्राह्मण ही श्रेष्ठ वर्ण है, शुक्ल वर्ण है, पवित्र है, ब्रह्म के मुख से उसकी उत्पत्ति हुई है, वही ब्रह्म का प्रतिनिधि है। दूसरी ओर क्षत्रिय अपने को श्रेष्ठ बतलाते थे। ब्राह्मणों में भी उदीच्य ब्राह्मण अपने को अन्य ब्राह्मण जातियों से उच्च समझने लगे थे और कतिपय क्षत्रिय जातियाँ अपने को अन्यों की अपेक्षा श्रेष्ठ मानने लगी थीं, यथा शाक्यवंशी, जिन्होंने कौशल-नरेश प्रसेनजित के साथ एक शाक्य राजकुमारी का विवाह अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल माना था। इस तरह यह तो स्पष्ट है कि भगवान बुद्ध के समय में समाज में वर्ण-व्यवस्था अपनी जड़ें गहरी जमाए हुई थी। भगवान बुद्ध ने भी चारों वर्गों की उपस्थिति समाज में स्वीकार की है। बुद्ध के अनुसार चार वर्णों के सम्बन्ध में विचार भगवान बुद्ध ने चारों वर्णों - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की उत्पत्ति के संबंध में वेदों एवं ब्राह्मण ग्रंथों में प्रतिपादित सिद्धान्तों का खण्डन किया है। परंतु तत्कालीन ब्राह्मण एवं क्षत्रिय के मध्य श्रेष्ठतर कहलाने की होड़ में भगवान ने क्षत्रिय को ही श्रेष्ठ बताया है। भगवान बुद्ध के द्वारा इस तरह का वक्तव्य अम्बष्ठ नामक ब्राह्मण द्वारा शिकायत करने के पश्चात् दिया गया था। ब्राह्मण अम्बष्ठ ने भगवान बुद्ध से शिकायत की थी कि शाक्यों ने उन्हें अपने संस्थागार में बैठने के लिए आसन देने की बात तो दूर रही, सीधे मुंह बात भी नहीं की थी। भगवान बुद्ध ने सर्वप्रथम अम्बष्ठ ब्राह्मण के समक्ष वर्ण-व्यवस्था का खण्डन किया था, जिसका वर्णन सुत्तपिटक के दीघनिकाय के तृतीय सुत्त अम्बट्ठसुत्त में दिया गया है।' भगवान ने समाज में फैली वर्ण-व्यवस्था, जाति-व्यवस्था पर कठोर प्रहार किया। इसी प्रकार का वर्ण-व्यवस्था का खण्डन दीघनिकाय के अग्गज सुत्त में प्राप्त होता है। इस सुत्त में तथागत ने ब्राह्मण के इस दावे को, यथा-ब्राह्मण ही श्रेष्ठ वर्ण हैं, दूसरे वर्णहीन हैं, ब्राह्मण ही शुक्ल वर्ण हैं दूसरे वर्ण कृष्ण हैं, ब्राह्मण ही शुद्ध होते हैं, अब्राह्मण नहीं, ब्राह्मण ही ब्रह्म के मुख से उत्पन्न हुए ब्रह्मजात, ब्रह्मनिर्मित और 3. मज्झिम निकाय भाग - 2 , पृ. 84 4. दीघनिकाय, 1.3 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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