SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विपश्यना एवं मानव-मनोविज्ञान * 61 विश्वविद्यालयों और उच्च अध्ययन के केन्द्रों में जो दिशा दी जा रही है वहाँ विपश्यना एवं बौद्ध मनोविज्ञान का कोई स्थान नहीं है। भारत को स्वयं इस कार्य को आरम्भ करना होगा। मनोविज्ञान के अध्ययन की प्रणाली के रूप में विपश्यना को स्थापित करना एवं इस प्रयोग की पहल करना ये दोनों भारत के दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक सहयोग के माध्यम से किया जाना चाहिये। दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक क्षेत्रों के अतिरिक्त सभी क्षेत्रों के ज्ञान और प्रतिभा का उपयोग एक साथ लेकर इस दिशा में आगे बढ़ना होगा। यह दिखलाना होगा कि मानव मनोविज्ञान के अध्ययन के लिए विपश्यना किस प्रकार एक शक्तिशाली सिद्धान्त एवं प्रयोगधर्मी मानक उपकरण के रूप में विकसित हो सकता है और उसी के अनुरूप पाठ्यक्रम एवं प्रायोगिक प्रविधियों का प्रवर्तन करने की आवश्यकता है। उपर्युक्त दृष्टि से मानव के मन और उसके मानसिक पर्यावरण की स्थिति को देखते हुए प्रतीक्षारत रहने के स्थान पर विपश्यना को सामान्य जीवन में अनुशासित करने के लिए दो कार्य आरम्भ करने की आवश्यकता है। (1) शिक्षा में सैद्धान्तिक दृष्टि से इसको प्रचलन में लाना, (2) भारतीय दृष्टि से जो प्रायोगिक एवं उपचारमूलक विधिया हैं उनके अनुरूप एवं संगत अनुपश्यना अथवा विपश्यना मूलक प्रयोगों आदि को प्रतिष्ठित करना। इस दृष्टि से योग, ध्यान, प्रेक्षा, तप, प्राणायाम, आनापान सति, शिक्षा-संस्कार दर्शन आदि का प्रामाणिक प्रयोग निश्चित किया जाना चाहिये। इस पहल से ही शमथ यान आगे बढेगा। मानवीय जीवन आरोग्यमय, निरामय, सुख, शांति और तृप्ति से पूर्ण होगा और प्राणिमात्र के लिए अहिंसा और करुणा से पूर्ण जीवन का अवतरण हो सकेगा। ___ - अध्यक्ष, दर्शनशास्त्र विभाग जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy