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________________ 60 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला इस प्रकार मनोविज्ञान एक नए सम्मिश्रण के साथ मानव के वर्तमान एवं भविष्य में प्रवेश कर रहा है। इस आधुनिक परिप्रेक्ष्य में बौद्ध धर्म एवं दर्शन की प्रासंगिकता की दृष्टि से विचार करना आवश्यक हो गया है। बौद्ध दर्शन में मन एवं मनोविज्ञान पर जिस गहनता से अध्ययन किया गया है, वह आने वाले संकट से मानव को उबार सकता है। वह आज की हमारी समस्याओं विशेषकर आधुनिक जीवन की दृष्टि और मनोविज्ञान की भूमिका के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुई हैं, उनका हल कर सकती है। आज का विचार सुखमूलक, स्वार्थमूलक और साधन मूलक दृष्टि और सृष्टि को ही जीवन का सार मानता है। वह मानव जीवन की रचना को उसी ओर मोड़ देना चाहता है, लेकिन हमने ही हमारे दर्शन और धर्म को त्याग कर उसके पीछे होने को नियति मान लिया है। वस्तुतः हमें अपने श्रेष्ठ दर्शन और उसके सिद्धान्त एवं व्यवहार को पुनः जानना और जीवन को जागृत करना होगा। हमें पुनः हमारी परम्परा के अनुरूप अनुपश्यना एवं विपश्यना के साथ जीवन दृष्टि को पुनः प्रकट करना होगा। इसे जीवन में पुनः मनोविज्ञान की दृष्टि से प्रयोगधर्मी उपकरण के रूप में विकसित करना होगा। व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन में उसे एक उपयोगी सिद्धान्त एवं प्रयोगधर्मी उपकरण, उपाय एवं उपयोग के लिए विकसित करना होगा जो उन समस्याओं से मानव और उसकी दृष्टि को मुक्त कर सके जिसने समस्त मानव जीवन को और उसके हर पहलू को एक समस्या में रूपान्तरित कर दिया ____बौद्ध दर्शन की दृष्टि से विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि आधुनिक मनोविज्ञान जिस दृष्टि से विकसित हुआ है वह अभी तक चित्त की उस भूमि को अपने अध्ययन का विषय नहीं बना पाया है जिसे बौद्ध दार्शनिक कामावचर चित्त कहते हैं। आज की चुनौती आधुनिक जीवन दृष्टि का परिणाम है। वास्तव में कामावचर चित्त और उससे उत्पन्न चित्तोत्पादों के साथ, आने वाले समय में रूपावचर चित्त एवं चित्तोत्पाद के प्रभाव का प्रदर्शन होने वाला है। कम्प्यूटर, नेनो तकनीकी एवं जीन तकनीकी के प्रयोग के साथ इन्द्रियों की शक्ति का विस्तार एक नए मानसिक एवं जैविक पर्यावरण करने की रचना करने में संलग्न है जो हमारे व्यक्तिगत एवं सामूहिक संश्लिष्ट चेतन को ऐसी परिस्थितियों में ला देंगे जिसके लिए आज का मनोविज्ञान न तो सक्षम है और न ही उपयोगी सिद्ध हो सकेगा। हमें विपश्यना को और चित्त के प्रति बौद्धदष्टि को मनोविज्ञान के क्षेत्र में अE ययन, अध्यापन एवं प्रयोग व अनुसंधान आदि के लिए अपनाना चाहिए। इसे मानव मनोविज्ञान के अध्ययन की प्रणाली के रूप में विकसित करना चाहिए। आज भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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