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विपश्यना एवं मानव - मनोविज्ञान 59 तक सीमित न होकर विश्वबाजार और विभिन्न संस्थागत उपकरणों में से एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बन गया ।
दूसरी ओर गेस्टाल्ट-मनोविज्ञान मानव की सामूहिक एवं संगठनात्मक मनोविज्ञान की उन शाखाओं का विकास कर रहा है जहाँ मनोविज्ञान निरन्तर पेशेवर दक्षता एवं विशेषज्ञता में प्रवेश कर रहा है। इसलिए आज मनोविज्ञान और मनोवैज्ञानिक दोनों ही अपने को किसी एक सम्प्रदाय के दायरे में नहीं रखते, बल्कि वे जिस विषय या क्षेत्र विशेष को चुनते हैं उसमें सभी सम्प्रदायों के उपयोगी सिद्धान्तों का समावेश करते हैं।
यह कार्य करते हुए वे मानव मन की वैयक्तिक एवं सामूहिक दृष्टियों, प्रतिक्रियाओं, संकल्पों, स्मृति, भाषा, विचार, सूचना, ज्ञानात्मक एवं अवधारणात्मक प्रक्रियाओं आदि का अध्ययन कर उसे वास्तविक जीवन में लागू करते हैं और उन परिणामों को उत्पन्न करते हैं या प्रभावित करते हैं जो मानवीय अस्तित्व और जीवन द्वारा प्रवर्तित हो रहा है और होगा। सीखने की दृष्टि से वे व्यक्ति, समूह आदि के विभिन्न पक्षों और व्यवहारों के अध्ययन के लिए उन वैज्ञानिक प्रणालियों का अध्ययन करते हैं जो मानव की जैविक संरचना के तुल्य अन्य प्राणियों में उसी प्रकार की समानता रखती हैं। इस प्रकार आज मानव मनोविज्ञान को सीखने, जानने और उस पर नियंत्रण के साथ-साथ विकास के लिए विभिन्न प्राणियों के जैविक एवं मनोवैज्ञानिक पक्षों, प्रतिक्रियाओं आदि का शोध और उपयोग हो रहा है। वे मानव मनोविज्ञान के सापेक्ष उन प्राक्कल्पनाओं की पुष्टि और प्रयोग कर रहे हैं जो हमें चिकित्सा, संगठन, समाज रचना, व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में हमारी समझ को और अधिक विकसित कर सके और मनोविज्ञान को और अधिक उपयोगी बना सके।
इसी क्रम में सूचना एवं कम्प्यूटर तकनीकी तथा जीन रचना तकनीकी के साथ नेनो तकनीकी का मनोविज्ञान के साथ गठजोड़ का प्रभाव सम्पूर्ण मानव के भविष्य को प्रभावित करने वाला है। यही कारण है कि हमारे सामने एक ऐसी चुनौती विकसित हो रही हैं जो मनोविज्ञान को एक चक्राकार रीति से संगठित एवं प्रचलित करने वाली है। इसका एक संक्षिप्त आभास इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है।
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