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________________ विपश्यना एवं मानव-मनोविज्ञान डॉ. चन्द्रशेखर __ मनोविज्ञान का आधुनिक स्वरूप मूल रूप से पाश्चात्त्य दर्शन के विकास का परिणाम है। देकार्त के द्वारा मन एवं शरीर के सम्बन्ध की समस्या को देखने के पश्चात् अनुभववादियों और उसके बाद ब्रिटिश सहभागितावाद और फिर काण्ट का इस सम्बन्ध में विशेष प्रभाव पड़ा है। वर्तमान में मनोविज्ञान को जिस रूप में समझा और जाना जाता है, उसका विकास प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Experimental Psychology), संरचनावाद (Structuralism) फलनवाद (Functionalism), व्यवहारवाद (Behaviourism) और गेस्टाल्ट का मनोविज्ञान (Gestalt's Psychology) के साथ विभिन्न प्रकार के सिद्धान्त और सम्प्रदायों में हुआ है। इसमें हेरिस (Heirs) से लेकर फ्रायड (Freud) तक विकास यात्रा का प्रभाव स्पष्ट है। उत्तर आधुनिक फ्रायडियन मनोविज्ञान की इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आज मनोविज्ञान का जो स्वरूप दिखाई देता है वह दो धाराओं को व्यक्त करता है - 1. व्यवहारवाद 2. गेस्टाल्ट - मनोविज्ञान व्यवहारवाद मूलतः हमारी प्रतिक्रियाओं और व्यवहारों को अपने अध्ययन का विषय बनाता है, चाहे वह व्यवहार प्राकृतिक हो अथवा सीखा हुआ। चाहे वह सामूहिक हो या वैयक्तिक। यह आधुनिक मानव-मनोविज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व की और आधारभूत मनोवैज्ञानिक प्राककल्पनाओं के निर्माण और मानव मन को समझने एवं उसे नियंत्रित करने के लिए विभिन्न प्रकार के सिद्धान्त एवं प्रयोगधर्मी निर्देशों का विकास करता है। यह उन निष्कर्षों को व्यवहार में अपनाने के लिए मानव के निर्णय, प्रेरणा, व्यवहार आदि के स्तर पर निदानमूलक एवं व्यवहारमूलक उपाय एवं उपयोग दोनों को विकसित करता है। आज मनोविज्ञान का यह स्वरूप केवल अकादमिक या सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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