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पालि - साहित्य में प्रजातांत्रिक मूल्य 57 जब भिक्षु एकत्रित होकर संघ में अपने-अपने पापों का स्वीकरण कर क्षमायाचना करते हैं और कृतसंकल्प होते हैं तथा इस प्रकार अपने किये हुए अपराधों से जो मुक्त होते हैं, तो यह प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का एक अच्छा उदाहरण बन जाता है। '
अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र का उदाहरण हमें 'महावंस' में द्वितीय संगीति के अवसर पर मिलता है जब असंख्य भिक्षुओं में से चार-चार को पंच अधिकरण शमथ (झगड़े को शान्त करने) के लिए चुना जाता है ।' विनयपिटक में आपसी झगड़ा सुलझाने के लिए अधिकरण शमथ का विधान है तथा आवश्यकता पड़ने पर शलाका पद्धति में भिक्षुओं को निर्णय जानने का विधान है।
भगवान बुद्ध के समय जब यह विवाद उठता है कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा तो देवदत्त अपने को उत्तराधिकारी बनवाना चाहता है तब बुद्ध स्पष्ट कहते हैं कि उनके बाद बुद्ध वचन (37 बोधि पाक्षिक धर्म) ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। जब कोई विवाद की स्थिति बने तो इनसे मिला लेना चाहिए, इनके अनुकूल हो तो स्वीकार करें अन्यथा छोड़ दें।
प्राय: इतनी व्यवस्था के बाद भी हम देखते हैं कि बौद्ध संघ में भेद - प्रभेद होते गए। यह भी प्रजातंत्र की निशानी है कि सभी लोग अपनी व्याख्या के अनुरूप धर्म-पालन के लिए स्वतंत्र हैं । धर्म थोपा नहीं जा सकता। परिणामस्वरूप मध्यममार्ग की व्याख्या में ही चार दार्शनिक सम्प्रदाय, 18 धार्मिक सम्प्रदाय तथा बोधिसत्त्व जैसी विश्वोपयोगी धारणा विकसित हुई ।
यदा मम परेषां च भयं दुःखं च न प्रियम् तदात्मनः को विशेषोऽयं तं रक्षामि नेतरम् ।।
आधार ग्रंथ
1. दीघनिकाय, विनयपिटक आदि त्रिपिटक के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ ।
2. ज्ञानायनी, वर्ष 3, संयुक्तांक 1-2, वर्ष 2005, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, लखनऊ प्राचीन राजवंश और बौद्धधर्म, लेखक - डॉ. अच्युतानन्द घिल्डियाल, प्रकाशन विवेक घिल्डियाल बन्धु समरा, वाराणसी, 1976 ।
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आचार्य एवं अध्यक्ष बौद्धदर्शन विभाग राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (मानित विश्वविद्यालय) गोमती नगर, लखनऊ
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5. महावग्ग, उपोसथ खन्धक ।
6. पाचीनेक च चतुरो चतुरो पावेय्यके पि च ।
उब्बाहिकाय तं वत्थु समेतुं निच्छ्यं अका। - महावंस, चतुत्थो परिच्छेदो, गाथा संख्या 47, पृ. 20
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