________________
- 56 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला
1. भिक्षु द्वारा सम्पूर्ण दिवस कारमता युक्त नहीं होना। 2. बकवाद से युक्त न होना। 3. निद्रारमता से युक्त न होना। 4. संगणिकारामता युक्त नहीं होना। 5. पापेच्छ के वश में न होना।
पापमित्र पापसहाय बुराई की ओर रुझान न होना। . 7. थोड़े से विशेष को पाकर बीच में छोड़ देने वाला नं होना।
ये अपरिहानीय धर्म भी प्रजातंत्र की फलता में सहायक हैं। भगवान बुद्ध ने जो अन्य सात अपरिहानीय धर्मों का उपदेश दिया है, वे इस प्रकार
लं.
1. भिक्षुओं का श्रद्धालु होना। 2. पाप से लज्जाशील होना 3. पाप से भय खाने वाला होना। 4. बहुश्रुत होना 5. उद्योगी होना
6. याद रखने वाला होना। 7. प्रज्ञावान होना।
- इन सात अपरिहानीय धर्मों के विद्यमान रहने पर प्रजातंत्र की सफलता निश्चित है, क्योंकि जनता जब पाप से लज्जाशील और भय खाने वाली होगी, तो उसका नैतिक स्तर विकसित होगा तथा जनता के बहुश्रुत, उद्योगी एवं प्रज्ञावान होनेपर ही योग्य शासक चुना जा सकेगा। अतएव ये सात अपरिहाणीय धर्म भी प्रजातंत्र की सफलता के पूरक हैं। .. प्रजातंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि जनता में त्याग की भावना हो। यदि त्याग की भावना नहीं होगी, तो शासक (जो जनता में से जनता के द्वारा चुना जाता है, वह) राष्ट्रीय सम्पत्ति को लोभवश अपने घर लाता चला जायेगा। 'धम्मपद' में त्याग की महत्ता का उपदेश देते हुए भगवान् बुद्ध कहते हैं कि जो अपने लिए या दूसरों के लिए पुत्र, धन और राज्य नहीं चाहता और न धर्म से अपनी उन्नति चाहता है वही शीलवान, प्रज्ञावान और धार्मिक है।'
प्रजातंत्र के दो भेद किये गये हैं - 1. प्रत्यक्ष प्रजातंत्र 2. अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र
इन भेदों का नमूना भी पालि साहित्य में देखने को मिल जाता है। उपोसथ के दिन
2. वही पृ. 14-16 3. वही, पृ. 16 4. न अत्तहेतु न परस्स हेतु न पुत्तमिच्छे न धनं न रठें।
न इच्छेय्य अधम्मेन समिद्धिमत्तनो, स सीलमा पञ्जावा धम्मिको सिया। - धम्मपद, पण्डितवग्ग,9
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org