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54 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला
संघ में उपोसथ की व्यवस्था थी, जिसमें 15 दिन में एक निश्चित क्षेत्र में रहने वाले भिक्षु उपस्थित थे एवं पातिमोक्ख का पाठ करते थे। इसमें व्यवस्था थी कि सभी लोग अपने-अपने दोषों का वर्णन करें एवं तदनुसार दण्ड प्राप्त करें। भिक्षु द्वारा दोष छिपाए जाने पर दूसरा भी प्रकट कर देता था। इस प्रकार सूक्ष्मतया देखने से पता चलता है कि यहाँ के नियमों के विधान में तानाशाही व्यवस्था नहीं थी, तीन-तीन बार अनुमोदना का विधान था।
बुद्ध के पश्चात् संगीतियों के माध्यम से जो बुद्धवचनों का संग्रह किया गया उसमें प्रजातंत्र का स्वरूप प्राप्त होता है। भगवान बुद्ध के पश्चात् महाकाश्यप ने अनुभव किया कि बुद्धवचनों का संग्रह होना चाहिए। अतः तीन महीने पूर्व सभी विहारों के भिक्षुओं को सूचना दे दी गई, स्थान निश्चित हो गया, अध्यक्ष का निर्णय हुआ। विचार किया गया कि किस प्रकार बुद्धवचनों का संग्रह किया जाय।
आनन्द को सुत्त के लिए तथा उपालि को विनय के लिए चुना गया। प्रत्येक सुत्त के संग्रह के पश्चात् संघ से अनुमोदना करायी गयी। इसमें आनन्द की सदस्यता (अर्हत्व) को लेकर भी रोचक चर्चा है कि पहले आनन्द को प्रायश्चित्त लेना पड़ा, क्षमा-याचना करनी पड़ी। पश्चात् ही उसको इसके लिए अर्ह माना गया।
प्रथम सङ्गीति के 100 वर्ष पश्चात् संघ में 10 वस्तुओं के सेवन को लेकर विवाद खड़ा हुआ। कुछ भिक्षु दस वस्तुओं का सेवन करना चाहते थे, कुछ उनके पक्ष में नहीं थे। भगवान् बुद्ध ने कुछ क्षुद्रक नियम बना दिए थे जिनका प्रयोग करने पर दोष होता है, अपराध नहीं। विवाद होने पर यहाँ बँटवारा हो जाता है। एक प्रकार से बुद्ध की भावना लागू नहीं होती है कि एक होकर निर्णय किया जाय तथा निर्णय होने पर उसे सभी स्वीकार करें। वृद्ध भिक्षु अपना अलग संघ बना लेते हैं जो स्थविरवाद के नाम से जाना गया तथा अधिक संख्या वाले भिक्षु महासांघिक कहलाए। मतभेद इतना बढ़ा कि दोनों ने बुद्ध वचनों का संग्रह भी अलग-अलग किया। स्थविरवादियों ने जहाँ बुद्धवचनों का संग्रह पूर्व परम्परानुसार किया, महासांघिकों ने संस्कृत भाषा में बुद्धवचनों का संग्रह किया।
___ तृतीय संगीति सम्राट अशोक के समय सम्पन्न हुई। उसको बुलाने का कारण था कि बौद्ध धर्म 18 सम्प्रदायों में विभक्त हो गया था। अशोक ने मोग्गलि पुत्त तिस्सथेर की अध्यक्षता में यह निर्णय करना आवश्यक समझा कि वास्तविक बुद्धवचन क्या हैं? इसमें भी प्रजातांत्रिक पद्धति का प्रयोग किया गया। विभिन्न पक्ष उपस्थापित करने के बाद निर्णय किया गया कि यह सही है, शेष समुचित नहीं है। इसका विस्तार से प्रतिपादन कथावत्थु नामक ग्रन्थ में किया गया है, जिसे त्रिपिटक में समाहित किया गया है।
जब अशोक निर्णय कर लेते हैं कि स्थविरवाद ही सही है, शेष नहीं, तब बुद्धवचनों के प्रचार एवं प्रसार के लिए भी समुचित व्यवस्था की जाती है। बुद्धवचन
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