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दलितों का उत्थान और बौद्धधम्म-दर्शन * 51 इस व्यवस्था से हटने के लिये प्रयास करता है। डॉ. अम्बेडकर ने आधुनिक भारत में अछूतों के उत्थान के लिये और अछूतों के अछूतपन, अछूतपन की चेतना, अछूतपन की मानसिकता को समाप्त करने के लिये बौद्धधम्म और दर्शन को ही सब से बुनियादी रास्ता और बेहतर रास्ता माना है। बौद्धधम्म और दर्शन को अपनाने से दलित हिन्दूधर्म, दर्शन और समाज की शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की गुलामी से, दासता से मुक्त होते हैं और विश्व मानव समुदाय में एक स्वतंत्र मानव के रूप में अपना स्थान निर्माण करते हैं। दलित और बौद्धधम्म
बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर के द्वारा सन 1956 में और उसके बाद आज तक जिन अछूतों ने, दलितों ने बौद्धधम्म और दर्शन को अपनाया उनका उत्थान, विकास भारतीय समाज के अन्य समाजों की तुलना में कम नहीं है। आज वे भारतीय समाज जीवन के हर क्षेत्र में अपनी योग्यता को सिद्ध कर रहे हैं। आज उन्होंने इस देश में अपनी एक अलग पहचान निर्माण की है। उनकी अपनी स्वतंत्र बौद्ध संस्कृति निर्मित हो रही है, उनका अपना स्वतंत्र साहित्य है जो दलित साहित्य, अम्बेडकरवादी साहित्य के नाम से सारे संसार में विख्यात हो गया है। वे आज भारत की सम्पूर्ण बौद्ध विरासत को अपनी विरासत मानने वाले हो गये हैं और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आधुनिक भारत में हो रहे सामाजिक परिवर्तन के संघर्षों में उनकी बड़ी अहम भूमिका भी है, और यह सारा दलितों द्वारा बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर के नेतृत्व में बौद्धधम्म को स्वीकार करने के कारण ही सम्भव हुआ है। आधुनिक भारत में दलितों के उत्थान के लिये जिस प्रकार के धम्म, दर्शन, चिन्तन, प्रेरणा, आस्था और श्रद्धातत्त्वों की आवश्यकता है वह सभी बौद्धधम्म और दर्शन में है और बौद्धधम्म, दर्शन भारतीय भूमि में पैदा हुआ, फूला, फला इसलिये बौद्धधम्म और दर्शन का बड़ा महत्त्व है। वास्तव में दलितों के उत्थान
और बौद्धधम्म तथा दर्शन पर आज भी गंभीर रूप से सोचने की, चिंतन और मनन करने की आवश्यकता है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने दलितों के उत्थान के लिये बौद्धधम्म और दर्शन का रास्ता बताया है, उससे बढ़कर आज और कोई रास्ता हमें दिखायी नहीं दे रहा है।
जो लोग यह मानते हैं कि आर्थिक उत्थान से ही दलितों का उत्थान होगा, यह पूरा सत्य नहीं है, आधा सत्य है। दलितों की समस्या आर्थिक समस्या मात्र नहीं है। दलितों की समस्या जाति से उत्पन्न समस्या है और इसकी जड़ें भारतीय इतिहास में काफी गहरी हैं। डॉ. अम्बेडकर ने भारतीय समाज-व्यवस्था का बहुत ही वैज्ञानिक ढंग से गहराई में जाकर अध्ययन किया है, फिर वे इस निर्णय पर पहुंचे कि आर्थिक उत्थान से दलितों का उत्थान, दलितपन का विनाश सम्भव नहीं हैं, इसलिये उन्होंने धर्मान्तरण के
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