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. 50 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला दलित जाति की उत्पत्ति का मूल
भारत के दलितों की समस्या भारत के सनातन जातिवाद से उत्पन्न समस्या है। भारत के जातिवाद से भिन्न भारत की दलित समस्या नहीं है। भारत में जातिवाद है, इसलिए दलित समस्या है। भारत में जातिवाद इसलिये है, क्योंकि उसको धर्म का समर्थन प्राप्त है। इसके मूल में कर्मसिद्धान्त और ईश्वरवाद है और दोनों हिंदूधर्म के सिद्धान्त हैं। इसलिये दलित समाज जब हिंदूधर्म और समाजव्यवस्था का अंग है तब तक जातिवाद नष्ट नहीं होगा और दलित समस्या का हल भी नहीं होगा और दलित समस्या का हल नहीं होगा तो दलितों का उत्थान भी नहीं होगा। डॉ. अम्बेडकर ने इस बात को बार-बार कहा है कि अछूतपन की समस्या, जातिवाद की समस्या आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से हिन्दूधर्म से निर्मित और सम्बन्धित समस्या है। सदियों के जातिवाद और अछूतपन के कारण भारत के दलित केवल शारीरिक रूप से ही गुलाम हो गये हैं, ऐसी बात नहीं, बल्कि वे वाणी से भी मन से भी गुलाम हो गए हैं, दिलो दिमाग से भी गुलाम हो गए हैं। भारत के दलित अपने मानवीय अस्तित्व को भी भूल गये हैं और अपनी अस्मिता को भी भूल गये हैं। इस तरह की स्थिति में भारत के दलितों के उत्थान का रास्ता केवल अनीश्वरवादी, अनात्मवादी, प्रतीत्यसमुत्पादवादी बौद्धधम्म और दर्शन में ही है। यही डॉ. अम्बेडकर की मान्यता थी, क्योंकि भारत का दलित ईश्वरवाद, आत्मवाद, धर्मवाद, धार्मिक पाखण्ड, घटिया परम्पराएं, सनातन रूढ़ियां, जाति-पंथ-आस्था के मिथ्या रिवाजों में फंसा हुआ है और उसको इस मिथ्याजाल से निकालने के लिये बौद्धधम्म और दर्शन से बढ़कर कोई धर्म और दर्शन नहीं है, यह दलितों के उत्थान के लिये सब से महत्त्वपूर्ण बात है।
दलितों के उत्थान के लिये, अछूतपन की चेतना से ऊपर उठने के लिए, अपने अस्तित्व की पहचान करने के लिये यह मालूम होना जरूरी है कि जातिव्यवस्था, जातिभेद, अछूतपन, यह कोई दैवी, या ईश्वरीय, या अलौकिक, या नैसर्गिक, या स्वाभाविक व्यवस्था नहीं है, बल्कि यह व्यवस्था मानवनिर्मित, समाजनिर्मित है और समाज के एक विशेष काल में इसका निर्माण हुआ है। इस व्यवस्था में जो लाभान्वित थे उन्होंने इसको जानबूझकर, जोर-जबर्दस्ती संभालकर रखा है, उन्होंने इस व्यवस्था को ईश्वरीय व्यवस्था कहा है। इस व्यवस्था को ईश्वरद्वारा निर्मित धर्मद्वारा निर्मित कहा है। जाति, अछूतपन के निर्माण के बारे में बौद्धधम्म और दर्शन की यह स्पष्ट मान्यता है कि जातिव्यवस्था एवं अछूतपन ईश्वरीय व्यवस्था नहीं है, यह मानवनिर्मित है, उसी प्रकार यह व्यवस्था नैसर्गिक या स्वाभाविक नहीं है। बौद्धधम्म और दर्शन के माध्यम से जातिव्यवस्था के बारे में दलितों में इस तरह की चेतना पैदा होती है और वह इस व्यवस्था को नकारने के लिये आगे आता है, उसके मन में जातिव्यवस्था और अछूतपन के प्रति नफरत पैदा होती है और वह इस व्यवस्था को तोड़ने के लिये संघर्ष करता है।
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