SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दलितों का उत्थान और बौद्धधम्म-दर्शन * 47 है। भगवान बुद्ध ने लुम्बिनी में जन्म लेकर बोधगया में बोधि (ज्ञान) को प्राप्त किया था अर्थात् बुद्धत्व को प्राप्त किया था। उसके बाद उन्होंने अपना पहला उपदेश सारनाथ के इसीपत्तन मिगदाय में दिया था, जो 'धम्मचक्कपवत्तन' के नाम से सुविख्यात है। उसके बाद भगवान बुद्ध अपने जीवन के अन्तिम पल तक तत्कालीन मध्यप्रदेश और हिमालय की तराई के मैदानी प्रदेशों में विचरण करते रहे और विहार करते रहे। पालि तिपिटक साहित्य जिसको बुद्धवाणी कहा जाता है, उसमें भगवान बुद्ध के सारे उपदेश संगृहीत हैं। पालि तिपिटक भगवान बुद्ध के और उनके समकालीन अरहन्त बौद्ध भिक्खू और भिक्खुणियों के उपदेशों का संग्रह है। इस पालि तिपिटक के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इसमें भगवान बुद्ध का धम्म और दर्शन तो संग्रहीत है ही, लेकिन इस पालि तिपिटक में तत्कालीन भारतीय समाजव्यवस्था के सम्बन्ध में भी पर्याप्त जानकारी उपलब्ध होती है और भगवान बुद्ध तत्कालीन भारतीय समाज-व्यवस्था की कुव्यवस्था कहिये या विकृतावस्था कहिये, चार वर्णोंवाली व्यवस्था का, जातिवाद, जातिभेद, अछूतपन का खण्डन करते हुए हमें दिखायी देते हैं। उसी प्रकार वे अपने समय के समाज की हर प्रकार की विषमता, सामाजिक गैरबराबरी, सामाजिक अन्याय, जातीय शोषण, उत्पीडन, पुरोहितवाद, धर्मान्धता, धार्मिक पाखण्ड, मिथ्यावाद, मिथ्याधारणा आदि का खण्डन करते हुए दिखायी देते हैं। भगवान बुद्ध के विचारों का प्रभाव तत्कालीन भारतीय समाज पर बहुत बड़े पैमाने पर दिखायी देता है। गैर ब्राह्मण समाज में नई आशा की किरणें, नई उम्मीदें दिखाई देती हैं, क्योंकि भगवान बुद्ध के धम्म प्रवर्तन का उद्देश्य ही सामान्य जनों में परिवर्तन की आशाएं, उम्मीदें जगाता है। समाजव्यवस्था में परिवर्तन का विश्वास पैदा करता है। वह भारतीय समाज में सामाजिक क्रान्ति की शुरुआत थी।. . पालि तिपिटक साहित्य का महत्त्व पालि तिपिटिक के अध्ययन से विदित होता है कि तत्कालीन समाज के सभी वर्णो वर्गों, जाति और सभी प्रकार के सामाजिक, आर्थिक स्तरों के लोग बौद्धधम्म की ओर आकर्षित हुए थे और भगवान बुद्ध के अनुयायी बने थे। उन्होंने बुद्ध, धम्म और संघ की अपने जीवन के अंतिम सांस तक के लिये शरण ग्रहण की थी। पालि तिपिटक साहित्य में तत्कालीन समाजव्यवस्था के स्वरूप की पर्याप्त जानकारी हमें प्राप्त होती है। इस तरह से यह कहा जा सकता है कि पालि तिपिटक साहित्य प्राचीन भारतीय समाजव्यवस्था का सही और सुस्पष्ट ऐतिहासिक दस्तावेज है। पालि तिपिटक साहित्य के अध्ययन के बगैर हम प्राचीन भारतीय समाजव्यवस्था के सही स्वरूप को समझ नहीं सकते। पालि तिपिटक साहित्य में जातियों का उल्लेख है, और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा के स्तर का भी उल्लेख है। पालि तिपिटक साहित्य के अध्ययन से ज्ञात होता है कि सामाजिक समानता, जाति विनाश, दलित तथा पिछड़ी जातियों का उत्थान ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy