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________________ · 42 • बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला सम्पत्ति को येन-केन-प्रकारेण हथियाना चाहेगा। द्वेष, हिंसा, घृणा, वैमनस्य, विवाद, प्रतिघात आदि अनेक शब्द उपलब्ध होते हैं, जिनमें सूक्ष्म अन्तर होने पर भी दूसरों को हानि पहुंचाने का भाव निहित होता है और इसकी प्रवृत्ति होती है - "पर विनाश चिन्ता'। इसी प्रकार 'मोह' अज्ञान या मिथ्या दृष्टि को कहते है - मोहो ति अाणं। इससे ग्रसित व्यक्ति विभिन्न वस्तुओं या विषयों के विलक्षण स्वभाव (अनित्य, दुःख व अनात्म) को नहीं समझ कर उनके प्रति अनावश्यक ममत्व व तृष्णा उत्पन्न कर लेता है, जिनकी अनुपलब्धि होने पर वह दुःख अनुभव करता है। कोई भी व्यक्ति, संगठन, संस्था या राज्य दूसरों से शत्रुता, द्वेष, बदला लेने की भावना के कारण अथवा उन्हें प्रताड़ित करने की भावना से हिंसा या आतंक का सहारा लेता है। आज का समय विश्व के विभिन्न भागों में आतंकवाद के दौर से गुजर रहा है। जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है, अपने देश में नक्सलवाद, कश्मीर में धर्म के नाम पर पनपता आतंकवाद, पूर्वोत्तर भारत में विकसित होता पृथक्तावाद, इसके रूप हैं। प्रलोभन या भयपूर्वक धार्मिक मतान्तरण कराना, सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के नाम पर गुण्डागर्दी करना आदि भी अनेक माध्यम हैं, जिनसे आतंकवाद की अभिव्यक्ति होती है। बौद्ध धर्म की भूमिका बौद्ध धर्म स्वभावतः अहिंसावादी है, जिसमें पारस्परिक प्रेम, सौहार्द, सहिष्णुता, शान्पूिर्ण, सह अस्तित्व, करुणा आदि का प्राधान्य है। भगवान् बुद्ध के समय में भी कोसल और मल्ल के मध्य रोहिणी के जल को लेकर विवाद, अंगुलिमाल का आतंक, देवदत्त के षड्यन्त्र आदि अनेक स्थितियां आई थीं, जिनका निराकरण उन्होंने पारस्परिक बातचीत, मैत्री-करुणा, सहनशीलता आदि के माध्यम से निकाला। हिंसा एवं आतंकवाद एक ऐसी समस्या है जिसका समाधान कई बार बहुत शीघ्र निकल भी नहीं पाता और कभी-कभी इसमें वर्षों या दशकों भी लग जाते हैं। कई बार तो आतंकवादियों को प्रशिक्षण भी इस रूप में दिया जाता है कि उसे पता भी नहीं होता कि वह हिंसा, घृणा या आतंकवाद फैला कर कोई अनैतिक कार्य भी कर रहा है। अपितु अनेकधा वह यही मानकर चलता है कि वह अपने 'धर्म' या अन्य उद्देश्य की प्राप्ति हेतु कोई पुण्य कार्य ही कर रहा है। ऐसे दिग्भ्रमित व्यक्ति या संगठन के सदस्यों को कैसे समझाया जाए, यह एक बहुत बड़ी समस्या है। यदि हम बौद्ध धर्म की दृष्टि से विचार करें तो सबसे पहले तो हमें यह देखना पड़ेगा इसके मूल में कौन-कौन से तत्त्व सक्रिय हो सकते हैं। इसके बाद बुद्धनिर्दिष्ट 5. अभिधम्मत्थ संगहो, धर्मानन्द कौसम्बी, महाबोधि सभा, सारनाथ 6. तत्रैव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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