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________________ हिंसा एवं आतंकवाद के निवारण में बौद्ध धर्म की भूमिका डॉ. वैद्यनाथ लाभ भारतीय दर्शन की अधिकांश धाराएं धर्म एवं अध्यात्म से जुड़ी हैं, जिनके मूल में शान्ति, सौहार्द एवं मानव-कल्याण के भाव निहित हैं । बौद्ध तथा जैन धर्म-दर्शन तो अहिंसा, प्रेम, करुणा आदि के भावों से विशेष रूप से सम्पृक्त हैं। बौद्ध धर्म-दर्शन की यदि बात की जाए तो भगवान् बुद्ध अपने जीवनकाल में राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में बालवय से ही दूसरों के दुःखों से द्रवित होते थे, इसके अनेक दृष्टान्त उपलब्ध होते हैं। इन दुःखों के कारण क्या हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है, इन्हीं समस्याओं के निदान की खोज में उन्होंने महाभिनिष्क्रमण किया और छः वर्षो की कठिन तपश्चर्या के पश्चात् चार आर्य सत्यों के अन्वेषण के माध्यम से वे बुद्धत्व को प्राप्त हुए। बोधि- प्राप्ति के पश्चात् सात सप्ताहों के बोधगया - प्रवास के अनन्तर उन्होंने सारनाथ जाकर प्रथम धर्मचक्र प्रवर्तन किया। जब उनके शिष्यों की संख्या 60 तक पहुँच गई तब उन्होंने उन परिपक्व शिष्यों को दुःखी मानवता को सही मार्ग दिखाने के उद्देश्य से विभिन्न दिशाओं में भेज दिया। वे स्वयं भी वहाँ से मगध वापस गए एवं जटिल बन्धु, उनके अनुयायियों एवं जनसामान्य को दुःख शम हेतु अमृत वाणी का पान करवाया। बुद्ध के हृदय में दुःख से सन्तप्त मानव को दुःख से मुक्त कराने की प्रबल भावना थी, करुणा का उद्रेक था, जो समय-समय पर उनकी अमृतवाणी के माध्यम से करुणा की रसधारा के रूप में प्रस्फुटित एवं प्रवहमान होता रहता था । संसार में विभिन्न स्वभाव, रूप-रंग, सामाजिक - पारिवारिक-सांस्कृतिकबौद्धिक आदि स्तर के लोग रहते हैं । उनमें से कुछ करुणाशील हैं तो क्रूर एवं निष्ठुर भी हैं । बुद्ध को अपने शेष 45 वर्षो में अनेक प्रकार के लोग मिले। कुछ उनकी वाणी की मधुरता से प्रभावित होकर उनके अनन्य भक्त हो गए तो देवदत्त जैसे लोग अपनी दुष्टता से कभी बाज नहीं आए। षड्वर्गीय भिक्षु भिक्षुणियों के दुष्कृत्य भी बुद्ध एवं उनके धर्म के लिए एक बड़ी चुनौती थे, तथापि बुद्ध का मार्ग अहिंसा व प्रेम का ही रहा। उन्होंने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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