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________________ बौद्ध धर्म के सामाजिक सन्दर्भ : समता, मैत्री और करुणा * 33 महत्त्वपूर्ण घटना मानी जा सकती है। जब कौशल नरेश प्रसेनजित कन्या के उत्पन्न होने से बहुत व्यथित हुए तो उन्हें सांत्वना देते हुए बुद्ध ने कहा कि कन्या पुत्र से भी श्रेष्ठतर हो सकती है, अतः कन्या के जन्म पर शोक करना व्यर्थ है। बुद्ध इस बात में विश्वास करते थे कि स्त्रियां भी परुषों की भाँति अपना आध्यात्मिक विकास करने में सक्षम और स्वतंत्र हैं। सामाजिक क्षेत्र में भी अन्य धर्मों की तुलना में बौद्ध धर्म में स्त्रियों की स्थिति अच्छी रही। पितरों के उद्धार के लिए पुत्र होने की अनिवार्यता को बौद्धों ने स्वीकार नहीं किया, जैसा कि मनुस्मृति में माना गया है। बौद्धों में विधवा पत्नी अपने पति का तथा पुत्री अपने पिता का अन्तिम संस्कार कर सकती थी, कन्या अपने पिता की सम्पत्ति में भी भागीदार हो सकती थी। भिक्खुनी संघ का निर्माण करना बुद्ध का, तत्कालीन परिस्थितियों की दृष्टि से, एक क्रान्तिकारी कदम माना जाता है। भिक्खुनीसंघ ने स्त्रियों की धार्मिक स्वतंत्रता और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। भिक्षुणियाँ भी भिक्षुओं की भांति धार्मिक शिक्षा और प्रवचन करने में स्वतंत्र थीं। संयुत्त निकाय में कहा गया है कि स्त्री हुई तो क्या हुआ, यदि उसका चित्त शान्त और एकाग्र है तो वह सम्यक् धर्म और ज्ञान के मार्ग में आगे अवश्य बढ़ती है। इस संदर्भ में यह द्रष्टव्य है कि भिक्षुणियों को पूरा मान-सम्मान और समान अधिकार देते हुए भी दोनों के नियमों में भेद किया गया था, जो सम्भवतः तत्कालीन समाज की स्थिति को देखते हुए एक विवशता रही हो। महाप्रजापति गौतमी को जब भिक्षुणी की दीक्षा दी गई तब उनके लिए आठ नियमों का पालन करना अनिवार्य रखा गया। इन आठ नियमों में दो नियम इस प्रकार के हैं, जो निश्चित ही भिक्षुणियों को भिक्षुओं से कमतर आंकते हैं। ये दो नियम हैं -1. अभिवादन के सन्दर्भ में भिक्षुओं को प्रत्येक परिस्थिति में वरीयता होगी अर्थात् भिक्षु यदि.ज्ञान और आयु में कम है तो भी भिक्षुणियां भिक्षुओं का अभिवादन करेंगी। 2. भिक्षु भिक्षुणियों को सलाह अथवा निर्देश दे सकते हैं, पर भिक्षुणियों को यह अधिकार नहीं है। इस भेदभाव को स्वीकार करते हुए भी यह माना जा सकता है कि बौद्ध धर्म सामाजिक समता के सन्दर्भ में अन्य धर्मों की तुलना में अपने युग से कहीं आगे था। संयुक्त निकाय में कहा गया है कि स्त्री-पुरुष जो भी इस (बौद्ध) यान में आता है वह निर्वाण की शान्ति प्राप्त करता है।' पूर्ण सामाजिक समानता एक ऐसा आदर्श कहा जा सकता है जिसे प्राप्त करने में सम्भवतः हमें कई वर्ष और प्रतीक्षा करनी होगी। सिद्धान्त 4. K.Sri Dhammanand Maha Thera - 'Status of women in Buddhism p. 2 File://F:/ http://Egalitarianism/status of women in Buddhism.htm 5. The place of women in Buddhism by swarna de silva p. 5 file://F:/Egalitarianism/ The Place of Women in Buddhism by Swarna de Silva.htm 6. वही पृ.8 . 7. The Position of Women in Buddhism by L. S. Dewaraja p 5 Filel/F:/ ... Egalitarianism/The position of women in Buddhism byL.S. Dewaraja.htm. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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