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________________ 30 • बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला अपश्चात् जैसी होती हैं। एक जन्म के अन्तिम विज्ञान के लय होते ही दूसरे जन्म का प्रथम विज्ञान उठ खड़ा होता है।3।। बौद्ध मत एवं दर्शन का सही ज्ञान होने के लिये अनात्मवाद का ज्ञान होना आवश्यक है। यह त्रिलक्षण (तिलक्खण) अनित्य, दुःख और अनात्म में से एक है। अनात्मवाद का ज्ञाता अनित्यता एवं दुःख को भी जानता है। इसके ज्ञान से अहंकार और ममकार का नाश होता है। अनात्मवादी अनासक्त होता है, क्योंकि वह सम्यक् प्रकारेण जानता है कि अमुक वस्तु परमार्थतः उसकी नहीं है। वह संस्कारों के अनित्य और दुःख रूप को जानता है। त्रिलक्षण को जानने वाला सम्यक् दृष्टिवान होता है और प्रज्ञा का अधिगम करता है। - पालि एवं बौद्ध अध्ययन विभाग ___ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी-221005 32. धम्मसन्तति सन्दहति । अञ्जो उप्पज्जति, निरुज्झति, अपुब्बं अचरिमं विय सन्दहति। मि.प. पृ. 31. 33. पुरिमाविञाणे पच्छिमाविञाणं संगहं गच्छति । वही, पृ. 32. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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