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________________ 28 - बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला आत्मा अरक्षित है, क्योंकि वह बाहरी रक्षा है, आन्तरिक नहीं, अतः उनकी आत्मा अरक्षित है। इसके विपरीत जो काय से, वाणी से ओर मन से सदाचरण करते हैं उनकी आत्मा रक्षित है। भले ही उनकी रक्षा हस्तिसेना, न अश्वसेना, न रथसेना और न पैदल सेना करे तो भी उनकी आत्मा रक्षित है, क्योंकि वह रक्षा आन्तरिक है, बाहरी नहीं, अतः उनकी आत्मा रक्षित है। यहाँ पर 'आत्मा' संवृति अर्थ में प्रयुक्त है, न कि परमार्थ अर्थ में। निकायों में अनेक स्थल है जहां 'अत्त' किसी जीव समग्रता हेतु सांवृतिक स्तर पर प्रयुक्त होता है। इस प्रसंग में हम धम्मपद के अत्तवग्ग को ले सकते हैं। इसमें सभी दस गाथाएँ हैं जिनमें अत्त' शब्द संवृति अर्थ (स्वयं का अपना) में प्रयुक्त है। इसकी पुष्टि के लिए एक गाथा को उद्धृत करना प्रासंगिक होगा - - अत्ता हि अत्तनो नाथो, को हि नाथे परो सिया। .... अत्तना हि सुदन्तेन, नाथो लभति दुल्लभं।। .. मनुष्य अपना स्वामी आप है, उसका दूसरा स्वामी कौन होगा? अपने को ही भली-भाँति दमन कर लेने से वह दुर्लभ स्वामित्व का लाभ करता है। अत्तवग्ग के अतिरिक्त भी धम्मपद में कई स्थलों पर 'अत्त' शब्द सांवतिक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। उदाहरणार्थ, भिक्खुवग्ग की दो गाथाएँ प्रस्तुत हैं। अत्तना चोदयत्तानं पटिमंसेथ अत्तना। सो अत्तगुत्तो सतिमा सुख भिक्खु विहाहिसि।।28 जो अपने आप को प्रेरित करेगा, अपने ही आप को संलग्न करेगा, वह आत्म-गुप्त (अपने द्वारा रक्षित) भिक्षु सुख से विहार करेगा। अत्ता हि अत्तनो नाथो, अत्ता हि अत्तनो गति। तस्मा संयमयत्तानं, अस्सं भदंव वाणिजो।29 24. ये खो केचि कायेन दुच्चरितं चरन्ति, .....मनसा दुच्चरितं चरन्ति, तेस अरक्खितो अत्ता। कि. चापि ते हत्थिकायो वारक्खेय्य..पत्तिकायो...अरक्खितो अत्ता। वही पृ.71 25. येच खो केचि कायेन सुचरितं चरन्ति,......तेसंरक्खितो अत्ता। ...अज्झत्किा हेसा रक्खादू तेस रक्खितो अत्ता। वही, पृ. 72 26. सम्भाषा, पृ. 23 पा.टि. 22 27. धम्मपद (ध.प.) 160 (नालन्दा संस्करण) 28. वही पृ. 379 29. वही पृ. 380 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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