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________________ 26 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला अपसिद्धान्त के रूप में की जाती है। हम किसी व्यक्ति को नाम से पुकारते हैं। यह व्यवहार चलाने के लिये होता है, न कि परमार्थतः वह व्यक्ति या जीव होता है। आत्मा का शाश्वत मानना - यह शाश्वतवाद है। मृत्यु के पश्चात् जीव अथवा आत्मा का सर्वथा विनाश उच्छेदवाद है। ये दोनों दृष्टियाँ मिथ्यादृष्टियाँ हैं और ये तैर्थिकों की दृष्टियाँ हैं। बुद्ध ने इनका खण्डन करते हुए इन्हें त्यागने के लिये कहा है। त्रिपिटक के अनेक स्थल, जहाँ पर अनत्त सिद्धान्त का विवेचन प्राप्त होता है, उनमें से हम किसी में भी आत्मा के संबंध में सकारात्मक कथन नहीं पाते हैं।। श्रीमती रिज डेविड्स जैसी विदुषी महिला कहती है कि अनत्त संबंधी सभी उद्धरण यह व्यक्त करते हैं कि हमारे दैहिक और आत्मिक जीवन से भिन्न एक शाश्वत आत्मा है, जो उपनिषदों की आत्मा है, यही वास्तविक पुद्गल है। डॉ. विन्टरनित्ज कहते हैं कि यदि ऐसा होता तो हमारे ग्रंथ (त्रिपिटक) और स्वयं भगवान बुद्ध इसे सीधे-सीधे कहने से क्यों बचते? इसके विपरीत, आत्मा के संबंध में सभी प्रकार की मिथ्या दृष्टियाँ निर्वाण प्राप्ति में बाधक बताई गई हैं। ऐसे आत्मा के स्वभाव के संबंध में किये गये प्रश्नों का उत्तर बुद्ध ने नहीं दिया, क्योंकि ऐसे ज्ञान से दुःख-मुक्ति संभव नहीं है। दूसरी ओर सांवृतिक या व्यावहारिक अर्थ की दृष्टि से आत्मा का खण्डन नहीं किया गया है। ऐसा आत्मा है जो चिन्तन करता है, बोलता है, वेदन करता है, कार्य करता है और पुनर्जन्म की स्थिति में फल का अनुभव करता है, किन्तु यह विश्वास मात्र कि आत्म परमार्थ सत्य है, शाश्वत एवं स्थायी है, मिथ्या दृष्टि है। अतः यह कहा जा सकता है कि स्वयं को खोजो या जानो, आत्म-दमन या आत्म-संयम करो। हम यह भी कहते हैं कि मनुष्य अपने कर्मों का उत्तरदायी होता है। डॉ. विन्टरनित्ज अनात्मवाद के संबंध में श्रीमती रिज डेविड्स के द्वारा उद्धृत लघु कहानी की चर्चा करते हैं। वे प्रायः तीस भद्रवर्गीय पुरुषों में से एक, जिसकी पत्नी खो गई थी और वह तथा उसके साथी उस महिला को खोज रहे थे, की कहानी कहती थीं। महिला को खोजने वाले युवक को बुद्ध ने कहा था कि आत्म (स्वयं) को खोजो। यहाँ पर छान्दोग्योपनिषद 8.1.1 की अस्पष्ट प्रतिध्वनि हो सकती है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि बुद्ध ने 'आत्मा' का अर्थ -ईश्वर जो कि आप की आत्मा है', समझा होगा जैसा कि श्रीमती रिज डेविड्स का चिंतन है। जहाँ पर आत्म (स्वयं) को खोजो का अर्थ - 'आत्मा के संबंध में सत्य को जानो।' यही अर्थ इस प्रसंग से निकलता है और 15. ब्रह्मजालसुत्त, दीघनिकाय (दी.नि.) भा.1(नालन्दा संस्करण) पृ. 13-21 एवं पृ. 30-32. 16. द्रष्टव्य-डॉ. विन्टरनित्ज, एम. का लेख - 'सेल्फ एण्ड नान-सेल्फ अर्ली बुद्धिज्म', 'ए सम्भाषा' महाबोधि सेन्टेनरी कम्मेमोरिटिव वाल्यूम), मुख्य संपादक आदिकरी, ए. पिरिवेण एजूकेशन ऑफ दि मिनिस्ट्री ऑफ एजूकेशन एण्ड हायर एजूकेशन, श्रीलंका, 1991, पृ. 22-23 17. वही, पृ. 22 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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