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________________ 22 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला महासतिपट्ठान सुत्त, आनापानस्सति सुत्त आदि विपश्यना साधना की तकनीक जानने के बड़े ही महत्त्वपूर्ण सुत्त हैं। __ अंत में मैं कहना चाहूंगा कि पालि साहित्य का जो आगमिक (Canonical) अंश है, वह ऐसा साहित्य है जो भावनामयी प्रज्ञा-प्रसूत है, कल्पना प्रसूत नहीं। इसके अप्रतिम उदाहरण हैं भगवान बुद्ध द्वारा दिये गये उपदेश, उनके द्वारा कही गयी गाथाएं तथा थेरों और थेरियों की गाथाएं। यह ऐसा साहित्य ह जहां शांत रस की निष्पति होती हैं। इसमें पाय जाने वाल शृंगार और वीर रस अवसान शांत रस में होता है। अत: मेरा यह कहना है कि इस साहित्य में कुछ भी हेय नहीं है, सब कुछ उदात्त है, इसमें अश्रुप्रवणता नहीं है। यह मनुष्य को बुद्ध द्वारा बताये गये आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलने को उत्साहित, प्रेरित करता है। इसलिए मेरा कहना है कि जहां और साहित्यों का पर्यवसान होता है वहां से पालि साहित्य का प्रारंभ होता है - Pali literature takes off from where other literatures land. ___पालि साहित्य का प्रकृति वर्णन भी और सब साहित्यों के प्रकृति वर्णन से अनूठा है, भिन्न है। (देखें, मेरा लेख Nature in the Theragāthā included in Essays on Buddhism and Pali Literature) सुत्तपिटक के अध्ययन की उपयोगिताओं में से मैंने जितनों का उल्लेख किया है, वे तो सिर्फ एक गागर भर हैं, उपयोगिता तो विशालसागर की तरह है। - विपश्यना विशोधन विन्यास, इगतपुरी (महाराष्ट्र) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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