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त्रिपिटक के अध्ययन की उपयोगिता 21 आवश्यकता की पूर्ति कर सकती है, पर हमारे लोभ को पूरा करने में वह अक्षम है। मनुष्य के मन में जब तृष्णा जागती है तब उसके साथ सैकड़ों विकार उत्पन्न होते हैं और जीवन दुःखमय हो जाता है। तृष्णा के कारण मनुष्य चोरी, व्यभिचार, हिंसा आदि करता है और दुःख भोगता है। इसी तृष्णा के कारण प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं का दोहन करने लगता है। यदि मनुष्य लोभ का संवरण कर सके तो वह बड़ी विजय प्राप्त कर सकता है। भगवान बुद्ध ने कई स्थलों पर वृक्षों को काटने से मना किया है, जल को गंदा करने से मना किया है, वृक्ष की पत्तियों को तोड़ने, शाखाओं को व्यर्थ काटने से मना किया है। प्रकृति की अद्भुत देन जंगल को बुद्ध बहुत पसंद करते थे । उसके सौन्दर्य से वह आप्यायित हुआ करते थे । प्रकृति के साथ उनका प्रेम ऐसा था कि उनके जीवन के चारों महत्त्वपूर्ण घटनाएं खुली प्रकृति में हुईं, लुम्बिनी में पैदा हुए, बोधगया के पास उरुवेला में ज्ञान की प्राप्ति की, वाराणसी के पास सारनाथ के इसिपत्तन मिगदाय में धम्मचक्कपवत्तन किया और कुसीनारा के मल्लों के शालवन में महापरिनिर्वृत्त हुए । उन्होंने विशेषकर भिक्षुओं को पेड़ काटने हेतु नहीं कहा, पानी गंदा करने हेतु नहीं कहा। इस तरह उन्होंने पर्यावरण-संरक्षण पर बहुत ध्यान दिया।
जिस तरह वैज्ञानिक भौतिक जगत में नियमों की खोज करते हैं उसी तरह भगवान बुद्ध ने अपनी इस साढ़े तीन हाथ की काया में प्रयोग कर आध्यात्मिक जगत् में लागू होने वाले नियमों की खोज की। •
वेदनापच्चया तण्हा वेदना के प्रत्यय से तृष्णा होती है, स्पर्श के प्रत्यय से वेदना होती है - फस्सपच्चया वेदना और मन में उठने वाले सभी विचार शरीर पर वेदना उत्पन्न करते हैं - वेदना समोसरणा सब्बे धम्मा आदि । क्रोध आदि विकारों के उत्पन्न होने पर सर्वप्रथम अपनी हानि करते हैं और दूसरे की भी हानि करते हैं तो बाद में - पुब्बे हनति अत्तानं, पच्छा हनति सो परे आदि । इसी तरह हम यह भी जानते हैं कि तृष्णा कहाँ उत्पन्न होती है और कहां इसका निरोध हो सकता है - यं लोके पियरूपं एत्थेसा तण्हा उप्पज्जमाना उप्पज्जति, एत्थ निविसमाना निविसति - एत्थ निरुज्झमाना निरुज्झति ।
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आध्यात्मिक क्षेत्र में भगवान बुद्ध के ये आविष्कार जो उन्होंने अपने अनुभव अर्जित से किये और जो कभी झूठे नहीं हो सकते, अनमोल रत्न हैं। यदि हम इन नियमों को अनुभव के धरातल पर देखें तो हम तृष्णा दूर कर तृष्णातीत हो सकते हैं, विकारों को दूर कर विकारहीन एवं निर्विकार हो सकते हैं और राग-द्वेष मोह की आग बुझाकर शांत हो सकते हैं। प्रतीत्यसमुत्पाद की सभी बारह कड़ियां उनकी स्वानुभूति की देन हैं।
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विपश्यना साधना भगवान का एक बड़ा ही महत्त्वपूर्ण आविष्कार है । इसकी साधना कर मनुष्य दुःखों से छुटकारा पाकर निर्वाण का अधिगम कर सकता है।
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