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18 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला का उच्छेदवाद, पकुधकच्चायन का अकृततावाद, निगण्ठ नाटपुत्त का चातुर्यामसंवरवाद (सब्बवारिवारितो, सब्बवारियुतो, सब्बवारिधुतो और सब्बवारिफुटो) तथा संजय वेलट्ठपुत्त का संशयवाद यहाँ उल्लिखित है। इस सुत्त में उस समय के प्रचलित शिल्पों जैसे अस्सारोहा (Cavalry), हत्थारोहा (Elephat driving) का उल्लेख है तथा श्रामण्य के श्रेष्ठ फलों का वर्णन है - जैसे शील का पालन, इन्द्रिय संवर, स्मृति सम्प्रजन्य, संतोष, नीवरण प्रहाण तथा ध्यान की प्राप्ति, विपश्यना ज्ञान की प्राप्ति, छह अभिज्ञाओं की प्राप्ति।
इस तरह के नैतिक सिद्धांतों का समाज पर क्या असर था यह हम जान सकते हैं तथा इन नैतिक सिद्धांतों के बीच बुद्ध का नैतिक सिद्धांत कितना उपयोगी प्रमाणित हुआ - इसका आकलन हम आसानी से कर सकते हैं। जहाँ और विचारकों के नैतिक सिद्धान्तों ने समाज में निविड़ अंधकार फैला रखा था, वहाँ बुद्ध का नैतिक सिद्धांत प्रकाश बनकर आया। लोगों को यह पता चला कि किसी भी अच्छे या बुरे कर्म के लिए वे ही जिम्मेवार हैं और उन कर्मों का फल उन्हें अवश्य मिलेगा। इससे लोगों में एक प्रकार की जागरूकता आई, अकुशल कर्मों से पराङ्मुख हो, अपनी जवाबदेही समझकर वे कुशल कर्म करने की ओर अभिमुख हुए। यह बुद्ध के नैतिक सिद्धांत का समाज में बड़ा योगदान कहा जा सकता है।
मज्झिम निकाय के ब्रह्मायु सुत्त पढ़ने से भगवान बुद्ध की दिनचर्या का पता चलता है। वे कैसे रहते थे, कैसे चलते थे, कैसे खाते थे तथा कैसे समय बिताते थे - इसका आंखों देखा वर्णन ब्रह्मायु के शिष्य उत्तर माणवक ने किया है। एक महान् व्यक्ति की दिनचर्या से, उनके क्रिया-कलाप से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं, हम अच्छे काम करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं।
भगवान कैसे थे -इसका वर्णन मधुपिण्डिक सुत्त में है - भगवा जानं जानाति, पस्सं पस्सति, चक्खुभूतो, आणभूतो, धम्मभूतो, ब्रह्मभूतो वत्ता पवत्ता, अत्थस्स निन्नेता, अमतस्स दाता धम्मस्सामी, तथागतो।
महापरिनिब्बान सुत्त में भगवान के गुणों का बखान है - इतिपि सो भगवा अरहं सम्मासम्बुद्धो, विज्जाचरण सम्पन्नो, सुगतो, लोकविदू, अनुत्तरो, पुरिसदम्मसारथि सत्था देवमनुस्सानं बुद्धो भगवा ति।
___धम्म के बारे में यहाँ कहा गया है - स्वाक्खातो भगवता धम्मो सन्दिट्ठिको, अकालिको, एहिपस्सिको, ओपनेय्यिको पच्चत्तं वेदितब्बो विजूही ति और संघ के बारे में यह कहा गया है - सुप्पटिप्पन्नो भगवतो सावकसङ्घो, उजुप्पटिपन्नो भगवतो सावकसंङ्घोजायप्पटिपन्नो भगवतो सावकसङ्घो, सामीचिप्पटिपन्नो भगवतो सावकसङ्घो यदिदं चत्तारि पुरिस युगानि अट्ठपुरिस पुग्गला।
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