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________________ त्रिपिटक के अध्ययन की उपयोगिता - 17 जानवरों का न मारा जाया और उन्होंने यह भी कहा कि हिंसक यज्ञ से शील यज्ञ, समाधि यज्ञ और प्रज्ञा यज्ञ श्रेष्ठतर है, श्रेष्ठतम है। प्रसंगवश समाज में शांति कैसे स्थापित हो - इस विषय पर उनका जो कथन है वह आधुनिक युग के मार्क्स को पीछे छोड़ देता है। राजा या शासक का कर्तव्य है कि वह किसान को बीज, कृषि करने के लिए हल और बैल और व्यापारी को व्यापार करने के लिए पैसे, साथ ही जो युवक और युवती राजा की सेवा करना चाहे उसे नौकरी और अच्छा वेतन भी दे। सभी लोग जब अपना-अपना काम करेंगे तो न तो कोई चोरी करेगा, न लूटपाट तथा हिंसा। समाज में शांति होगी। समाज में अव्यवस्था तब होती है जब लोगों को कुछ काम करने का नहीं होता। An empty mind is devil's workshop -खाली मन शैतान का कारखाना। अगर सभी अपने-अपने काम-धंधे में लगे रहेंगे तो उनके मन में वैसे विचार उत्पन्न ही नहीं होंगे जिनसे समाज में अशांति फैले। इस सूत्र के अर्थ में कथाकार ने यहां तक कहा कि राजा और प्रजा एक दूसरे पर विश्वास करे, क्योंकि विश्वास से ही विश्वास उत्पन्न होता है। यहां तक विश्वास करे कि राजा द्वारा दिया गया धन अगर किसान या व्यापारी वापस नहीं दे सके तो उसे फिर देकर समर्थ बनावे। उस पर कोई कानूनी कार्रवाई न करे। ऐसा विचार भगवान ने लोगों के सामने रखा। अभी हम बेरोजगारी (Unemployment) की बात करते हैं जिससे समस्या पैदा होती है। भगवान ने मार्क्स से बहुत पहले, आज से 2600 वर्ष पहले जो बात कही वह विधि व्यवस्था की समस्या के समाधान में बड़ी महत्त्वपूर्ण है, मौलिक है। अब तक हमने देखा कि जातिवाद पर बुद्ध के क्या विचार हैं। समाज में कैसे समरसता स्थापित की जाय, इस पर भी उनके उदार एवं उदात्त विचार देखे। बौद्ध संघ की स्थापना कर तथा ब्राह्मण से लेकर शूद्रातिशूद्र को अपने संघ में स्थान देकर उन्होंने एक ऐसा उदाहरण समाज के समक्ष पेश किया जो अनुकरणीय है। तिपिटिक के अध्ययन की और अनेक उपयोगिताएं हैं। इसके अध्ययन से विशेषकर सुत्त पिटक के अध्ययन से हमें उस समय के भारत की भौतिक सभ्यता का पता चलता है। इसके लिए दीघनिकाय का ब्रह्मजाल सुत्त बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यहाँ उस समय के सामाजिक तथा धार्मिक जीवन का भी वर्णन है। उस समय मनोरंजन के साधन क्या थे, आमोद-प्रमोद तथा सौंदर्य प्रसाधन के साधन क्या थे, किस तरह की कथाएं समाज में प्रचलित थीं, कौन-कौन सी विद्याओं में लोगों का विश्वास था - ये सारी बातें यहां वर्णित हैं। दार्शनिक एवं नैतिक दृष्टि से भी यह सुत्त महत्त्वपूर्ण है। यहां शील के अतिरिक्त बासठ प्रकार की मिथ्यादृष्टियों की चर्चा है। ___ सामफल सुत्त में छः प्रकार के अन्य तैर्थिकों का मत वर्णित है। पूरणकस्सप का अक्रियावाद, मक्खलिगोशाल का अहेतुकवाद, अजित केशकम्बली Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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