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________________ आधुनिक काल में बौद्ध धर्म-दर्शन * 177 नालन्दा का 'पालि-प्रतिष्ठान' वर्तमान में 'नवनालन्दा महाविहार' में परिणत हो गया है। यह संस्था पालि-भाषा, पालि साहित्य, बौद्ध धर्म व दर्शन के उच्च ज्ञान के आदान-प्रदान, सम्पादन एवं अनुसंधान के लिए स्थापित की गई है। यहाँ समस्त बौद्ध देशों की भाषाओं- तिब्बती, चीन, जापानी, सिलोनी, बर्मी, स्यामी में शोध अनुसंधान कराने का प्रबन्ध है। संस्थान के प्राध्यापकगण बौद्ध विद्वान् एवं बौद्ध देशों के निवासी हैं। इसमें अध्ययनार्थी भारत, श्रीलंका, स्याम, वियतनाम, फ्रांस, मंगोलिया, कोरिया, जापान, तिब्बत, म्यामांर आदि देशों के निवासी हैं। सन् 1956 ई. में बौद्ध निर्वाण की 2500वीं जयन्ती बोधगया में धूमधाम से मनायी गयी। पटना में 'महामहोपाध्याय डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल शोध प्रतिष्ठान' भी स्थापित किया गया है, जिसमें बौद्ध संस्कृति सम्बन्धित शोध-अनुसंधान भी हो रहा है। बिहार राष्ट्र भाषा परिषद् द्वारा आचार्य नरेन्द्र देव द्वारा विरचित महाग्रंथ 'बौद्ध धर्म-दर्शन' भी प्रकाशित किया गया, जो विलक्षण एवं अद्वितीय है। इस प्रकार अनेक संस्थाएँ आज भी बौद्ध धर्म एवं दर्शन के समुचित प्रचार-प्रसार हेतु विविध कार्य कर रही हैं। __ सभी भारतीय दार्शनिकों की तरह बौद्ध दर्शन का भी यही विचार है कि यह संसार दुःखालय है। सम्यक् ज्ञान से दुःखों की निवृत्ति व मोक्ष की प्राप्ति होती है। निर्वाण ही बौद्धों का परम तत्त्व है। बुद्ध का उद्देश्य निर्वाण की प्राप्ति है। डॉ. पारसनाथ द्विवेदी के शब्दों में "विभिन्न देशों में बौद्ध धर्म का पूर्ण प्रचार हुआ है और यह संसार के प्रमुख धर्मों में गिना जाता है। एक समय था जब संसार में बौद्ध का ही बोलबाला था। बुद्ध का अहिंसा का उपदेश देश के लिए बड़ा उपकारी रहा है। बौद्ध धर्म एवं दर्शन में आदर्शवाद एवं यथार्थवाद दोनों का समन्वय दृष्टिगोचर होता है।" बौद्ध धर्म-दर्शन के विकास में आधुनिक काल में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का योगदान भी अविस्मरणीय है। उनका ग्रन्थ 'द बुद्धा एण्ड हिज धम्मा' बुद्धिज्म को नये ढंग से स्थापित करता है। आज बौद्ध साहित्य तथा पालि साहित्य का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से भी अध्ययन होने लगा है। डॉ. अम्बेडकर ने 1935 ई. में बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया था। उन्होंने भारत के इतिहास में बुद्ध तथा बौद्ध मत की क्रांतिकारिता का भी विशेष रूप से अध्ययन किया। उसके बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि बौद्ध मत और दर्शन की क्रान्तिकारिता आज भी देश की राजनीतिक क्रान्ति को सफल बनाने के लिए अनिवार्य सांस्कृतिक क्रान्ति की अगुवाई कर सकती है। बुद्ध का दर्शन इस दृष्टि से श्रेष्ठ है। सन् 1950 ई. से उन्होंने सार्वजनिक रूप से बौद्ध मत का समर्थन करना शुरू कर दिया था। उन्होंने महाबोधि सभा, कलकत्ता के 'महाबोधि' मासिक पत्र के लिए बौद्ध धर्म पर अनेक लेख भी लिखे। बुद्ध-जयन्ती के अवसर पर 1950 ई. में दिल्ली की एक सभा में बोलते हुए डॉ. अम्बेडकर ने कहा था - "बौद्ध धर्म से हमें रोशनी दिखाई देती है। बौद्ध धर्म के कारण ही भारत देश महान् होने की बात Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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