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176 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला कलकत्ता, पटना तथा मथुरा के संग्रहालयों में रखा गया। सन् 1915 ई. से 1930 ई. तक बिहार के नालन्दा क्षेत्र की खुदाई की गई, जिससे 9 प्राचीन बौद्ध-विहारों पर प्रकाश पड़ा। इन विहारों के सामने स्तूपों या चैत्यों के भग्नावशेष भी प्राप्त हुए। इन चैत्यों के भग्नावशेष पर मिट्टी की बनी बुद्ध की ध्यान मुद्रा वाली मूर्तियाँ भी प्राप्त हुईं। नालन्दा के संग्रहालय में आज भी अनेक बौद्ध मूर्तियां विद्यमान हैं। ये मूर्तियां अष्टधातु, कांसें, पीतल तथा पाषाण से बनी हुई हैं, नालन्दा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का केन्द्र रहा है। प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय की मृत्तिका मुद्रा पर धर्म-चक्र का चिह्न बना है और चक्र के दोनों ओर शान्त मृग बैठे हुए दिखाए गए हैं। सन् 1915 ई. तथा सन् 1952-53 ई. में पाटलिपुत्र की खुदाई का कार्य किया गया। इस खुदाई में मौर्यकालीन तथा गुप्तकालीन सभा भवन प्राप्त हुए, जिसमें भिक्षु उपदेश देते थे, पाटलिपुत्र बौद्ध धर्म का गढ़ रहा। वर्तमान में पटना के संग्रहालय में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित बहुमूल्य सामग्री संगृहीत है जिससे बौद्ध धर्म से सम्बन्धित वस्तुओं की समुचित रक्षा हुई है। यह संग्रहालय आज भी बौद्ध गौरव के गीत सुनाता है।
आधुनिक काल में अनेक महापुरुषों ने भी बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य किया है। महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने अपनी लेखनी के माध्यम से हिन्दी और बौद्ध साहित्य की सेवा की है - यह स्तुत्य है, श्लाघनीय है। राहुलजी संस्कृत, हिन्दी, अरबी, फारसी, पालि, तिब्बती आदि भाषाओं के जानकार थे। राहुलजी ने लंका, नेपाल, तिब्बत, रूस, आदि देशों का अनेक बार भ्रमण किया तथा बौद्ध धर्म एवं दर्शन से सम्बन्धित दुर्लभ ग्रंथों का अनुवाद एवं सम्पादन किया। राहुलजी द्वारा लिखित एवं सम्पादित तथा अनूदित 125 ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। बौद्ध धर्म व दर्शन पर उनके जो ग्रंथ हैं, उनमें 'बुद्धचर्या' (1930 ई.) 'धम्मपद' (1933 ई.) 'अभिधर्मकोश' (1930 ई.) 'तिब्बत में बौद्ध धर्म' (1935 ई.) 'बौद्ध दर्शन' (1942 ई.) 'बौद्ध संस्कृति (1949 ई.) 'दोहाकोश' (1954 ई.) 'महापरिनिर्वाण सूत्र' (1951 ई.) तथा 'बुद्ध' (1956 ई.) प्रसिद्ध हैं। भिक्षु जगदीश कश्यप का नाम भी बौद्ध जगत् में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। उन्होंने लंका, मलाया, बर्मा, चीन तथा सिंगापुर की यात्राएँ की तथा बौद्ध धर्म एवं दर्शन का प्रचार-प्रसार किया। कश्यपजी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय में पालि विभाग के अध्यक्ष रहे। बौद्ध धर्म के अध्ययन, मनन तथा चिन्तन के लिए 'पालि प्रतिष्ठान' की स्थापना हुई, जिसके निदेशक पद को भी आपने सुशोभित किया। कश्यप जी ने भदन्त आनन्दकौसल्यायन व महापण्डित राहुल सांकृत्यायन के साथ खुद्दक निकाय', के 11 ग्रंथों का नागरी लिपि में सम्पादन किया। उन्होंने दीर्घ-निकाय 'संयुत्त निकाय' तथा 'मिलिन्दपञ्हो' का हिन्दी अनुवाद किया है। कश्यपजी के द्वारा लिखे गये मौलिक ग्रंथों - 'पालि भाषा का व्याकरण' (हिन्दी में) तथा 'बुद्धिज्म फॉर एवरी बॉडी' (अंग्रेजी में) का सम्मान भी विद्वत् जगत म है।
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