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आधुनिक काल में बौद्ध धर्म-दर्शन : विहंगावलोकन
डॉ. शैलेन्द्र स्वामी
भगवान बुद्ध अध्यात्मशास्त्र की गुत्थियों को सुलझाने वाले शुद्ध तर्क की सहायता से आध्यात्मिक तत्त्वों का विवेचन करने वाले दार्शनिक थे। वे बोधि ज्ञान (पूर्ण ज्ञान) प्राप्त करके गौतम 'बुद्ध' कहलाये। बुद्ध के उपदेशों पर मंथन के फलस्वरूप बौद्ध धर्म एवं दर्शन का विकास हुआ। इसके विकास पर प्रकाश डालते हुए श्री सतीशचन्द्र चट्टोपाध्याय एवं श्री धीरेन्द्र मोहन दत्त लिखते हैं - "कालान्तर में महात्मा बुद्ध के अनुयायियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई और वे कई सम्प्रदायों में विभक्त हो गये। धार्मिक मतभेद के कारण बौद्ध धर्म की दो प्रधान शाखाएँ कायम हुई जो हीनयान तथा महायान के नाम से प्रसिद्ध हैं। हीनयान का प्रचार भारत के दक्षिण में हुंआ। आजकल इसका अधिक प्रचार श्री लंका, बर्मा (म्यांमार) तथा स्याम (कम्बोडिया) में है। पालि-त्रिपिटिक ही हीनयान के प्रधान ग्रंथ है। महायान का प्रचार अधिकतर उत्तर के देशों में हुआ। इसके अनुयायी तिब्बत, चीन, कोरिया तथा जापान में अधिक मिलते हैं। महायान का दार्शनिक विवेचन संस्कृत में हुआ है। अतः इसके ग्रन्थों की भाषा संस्कृत है। इन ग्रन्थों का अनुवाद तिब्बती और चीनी भाषाओं में हुआ है। बौद्ध साहित्य के अनेक ग्रंथ जो भारत में अभी अप्राप्य हैं, चीनी और तिब्बती अनुवादों के द्वारा पुनः प्राप्त हो रहे हैं और उन्हें फिर से संस्कृत में अनूदित किया जा रहा है।" प्रो. हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा के अनुसार भी बौद्ध धर्म भारत तक ही सीमित नहीं रहा, अपितु, नृपों एवं भिक्षुओं की सहायता से दूसरे देशों में भी फैला और यह धर्म विश्व-धर्म के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।
उन्नीसवीं शती में जनरल कनिंघम और लार्ड कैनिंग के समय में प्राचीन बौद्ध धर्म-स्थलों पर पुरातत्त्व सर्वेक्षण हुए। सन् 1877 ई. से 1880 ई. के मध्य 2 लाख रुपये व्यय करके बोधगया में उत्खनन कार्य किया गया, जिससे बौद्ध धर्म से सम्बन्धित उपयोगी पुरातत्त्व सामग्री मिली। बौद्ध धर्म से सम्बन्धित अनेक मूर्तियों को बोधगया, .
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