________________
174 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला
___ कर्म की एक जन्म से जन्मान्तर में संक्रमण की स्थिति को अभिधर्मकोश में अधिक स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि कर्म तथा अविद्यादि क्लेशों से संस्कृत पञ्चस्कन्ध की सन्तति प्रवाहित होती रहती है। एक मृत शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को ग्रहण करने तक बीच में एक स्कन्ध सन्तति प्रवाहित रहती है जिसे अन्तराभव कहते हैं। यह स्कन्धसन्तति ही जन्म से जन्मान्तर में गमन करती है
नात्मास्ति स्कन्धमात्रं तु कर्मक्लेशाभिसंस्कृतम्।
अन्तराभवसन्तत्या कुक्षिमेति प्रदीपवत्।।२० बौद्ध धर्म-दर्शन में आवागमन के स्थान पर कर्म का जन्मान्तरण विवेचित है। भगवान बुद्ध के अनुसार प्राणी की मृत्यु के पश्चात् उसके कर्मों के व्यतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं रहता है। प्रत्येक व्यक्ति दीर्घकालिक श्रृंखला के कर्म का अन्तिम परिणाम होता है।
इस सम्पूर्ण विवेचन से यह स्पष्ट प्रतिपादित होता है कि अनात्मवाद में भी कर्मफल की व्यवस्था संधारित होती है।
- राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जालोर (राज.)
20. अभिधर्मकोश - 3,18
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org