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________________ 178 • बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला सारी दुनिया को कह सकते हैं....बुद्ध के दर्शन का मुख्य हेतु मानवीय समानता है, बुद्ध के दर्शन में सभी के लिए विचार स्वतन्त्रता प्रदान की गई हैं।" बुद्ध का दर्शन वास्तव में क्रान्तिकारी विचारधारा का दर्शन है। यह अपने समय के सर्वहारा वर्ग का दर्शन रहा है और आज भी यह दर्शन सर्वहारा समाज का सबल नेतृत्व प्रदान कर सकता है - इसमें सन्देह नहीं है। डॉ. अम्बेडकर ने बुद्ध की विचारधारा को आधुनिक सन्दर्भ में स्वीकार किया। बुद्ध की विचारधारा को स्वीकार करने में और सम्पूर्ण दलित समाज को ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण देशवासियों को बुद्ध के धम्म को स्वीकार करने के लिए आहवान करने में यही उद्देश्य था कि लोकतान्त्रिक मूल्य व आदर्श स्थापित हो तथा देश में समाजवादी समाज के निर्माण के लिए समाज में अनुकूल वातावरण तैयार हो। इस हेतु सन् 1950 ई. में बम्बई में 'बौद्ध जनसभा' की स्थापना की गई। डॉ. अम्बेडकर के निर्देशन में 14 अक्टूबर 1956 ई0 में नागपुर में बौद्ध भिक्षु चन्द्रमणि महास्थविर की उपस्थिति में एक साथ 7 लाख लोगों ने 'बौद्ध धम्म' की दीक्षा ली। इन नवदीक्षित बौद्धों में स्वाभिमान की चेतना जागृत हुई। कालान्तर में देश के अनेक स्थानों पर 'बौद्ध-दीक्षा' समारोह हुए, जिनमें भाग लेकर दलित समाज के लाखों लोगों ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया। इस प्रकार डॉ. अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म का सामान्यीकरण, समाजीकरण तथा आधुनिकीकरण करके बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारत में बौद्धधर्म को आम आदमी की मुक्ति के दर्शन के रूप में प्रतिष्ठित किया। यही डॉ. अम्बेडकर की बौद्ध धर्म के लिए महत्त्वपूर्ण देन है। इस सम्बन्ध में डॉ. विमलकीर्ति के 'बौद्ध धर्म के विकास में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का योगदान' विषयक पुस्तक में लिखे विचार उल्लेखनीय हैं। वे लिखते हैं - "बुद्धिज्म को स्वीकार करके उन्होंने सामाजिक तथा धार्मिक क्रान्ति के स्वरूप को स्पष्ट कर दिया है। डॉ. अम्बेडकर यदि बौद्ध न होते और अपने अनुयायियों को बौद्ध बनने की सलाह नहीं दते तो दलित समाज में जो सामाजिक एकता है वह दिखाई नहीं देती....यदि बौद्ध न होते तो डॉ. अम्बेडकर की प्रेरणा से आज देशभर में फैलते दलित साहित्य का आन्दोलन ही पैदा न होता। दलित साहित्य का दार्शनिक आधार बुद्ध का दर्शन है।" इस प्रकार आधुनिक काल के साहित्य पर भी बौद्ध धर्म-दर्शन की अमिट छाप दर्शित होती है, जो बौद्ध धर्म-दर्शन के आधनिक काल में इसके महत्त्व को उद्घाटिक करती है। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में डॉ. जगन्नाथ उपाध्याय, डॉ. रामशंकर त्रिपाठी, डॉ. गोविन्द्रचन्द पाण्डे, द्वारिका प्रसाद शास्त्री आदि विद्वज्जनों के भी नाम उल्लेखनीय हैं। - राजकीय दरबार आचार्य संस्कृत कॉलेज, जोधपुर (राजस्थान) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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