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________________ त्रिपिटक के अध्ययन की उपयोगिता * 15 भगवान ने वासेट सुत्त में एक वैज्ञानिक की तरह प्रमाणित किया कि मनुष्य जाति में वैसे भेद नहीं पाये जाते जैसे कीट-पतंग में तथा विभिन्न प्रकार के जानवरों में पाये जाते हैं। भेद करने वाले चिह्न यहाँ नहीं हैं। सभी देशों के मनुष्यों के अंगों में समानता है और सभी स्त्रियां ऋतुमती होती हैं, बच्चे पैदा करती हैं तथा स्तन का दूध पिलाती हैं इसलिए यह कहना कि ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से पैदा हुआ, अत: वह श्रेष्ठ है जैविक विज्ञान सम्मत नहीं है और बहुत हास्यास्पद है। उन्होंने प्रमाणित किया कि सभी मनुष्य एक ही जाति के हैं - All homosapiens constitute one species. अस्सलायन सुत्त में सामान्य बुद्धि का तर्क देकर उन्होंने यह प्रमाणित किया कि यदि ब्राह्मण शूद्र से सचमुच भिन्न होते तो ब्राह्मणों द्वारा काष्ठ रगड़कर पैदा की गयी आग शूद्रों द्वारा काष्ठ रगड़कर पैदा की गयी आग से प्रकाश एवं गर्मी में भिन्न होती। लेकिन देखा जाता है कि उनमें कोई अंतर नहीं होता। चाहे ब्राह्मण चन्दन की लकड़ी रगड़े और शूद्र कोई और लकड़ी, दोनों के रगड़े जाने से आग ही पैदा होती है, शीतलता नहीं। यदि ब्राह्मण और शूद्र में सचमुच कोई भेद होता तो नदी का जल और स्नानचूर्ण दोनों को एक तरह कैसे निर्मल करता? इसी सुत्त में भगवान ने कहा कि अगर चार जातियां विश्वव्यापी होती तो योन और कम्बोज में स्वामी और दास ही क्यों होते हैं। और यदि जाति की बात नित्य होती तो समय आने पर दास क्यों स्वामी बनता और स्वामी दास? मधुर-सुत्त में कहा गया है कि ब्राह्मण अन्य जातियों से श्रेष्ठ होते तो एक ब्राह्मणेतर धनी व्यक्ति द्वारा उन्हें कैसे नियुक्त किया जाता है? इस तरह के तर्क देने पर भी अस्सलायन का यह कहते रहना कि ब्राह्मण ही श्रेष्ठ हैं, शेष जातियां नीच हैं। ब्राह्मण ही गौर वर्ण के और शुद्ध हैं, वे ही ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हैं अन्य नहीं, अतः ब्राह्मण ही श्रेष्ठ हैं वैसा ही तर्क देना है जैसे जॉर्ज ऑरवेल के 'Animal Farm' में सूअरों द्वारा यह कहना कि 'सभी बराबर हैं, पर कुछ अन्यों की अपेक्षा अधिक बराबर हैं - All are equal, but some are more equal than others. . भगवान बुद्ध ने आध्यात्मिक दृष्टि से विचार कर यह दिखाया कि मेत्ता, करुणा, मुदिता तथा उपेक्षा की भावना सब कोई कर सकता है चाहे वह किसी भी जाति का हो। बाह्य रंग-रूप तथा तथाकथित उच्च जाति में जन्म लेना महत्त्व की बात नहीं है, महत्त्व की बात है उसका आंतरिक गुण, उसका कर्म। ___ दीघ निकाय के अग्गज सुत्त में भगवान ने कहा कि चारों जातियों के मनुष्यों में गुण दोष पाये जाते हैं। इसलिए वही श्रेष्ठ है जो शील का पालन कर, समाधि का अभ्यास कर प्रज्ञा की प्राप्ति करता है और सभी मानसिक दोषों को दूर कर निर्वाण की अवाप्ति करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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