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14 बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला
'हाँ, आते हैं।'
'तो तुम क्या उन्हें खाना-पीना देते हो ?'
'हाँ देता हूँ।'
'यदि वे न लें तो जो तुम देते हो, वह किसका होता है ?
'वह मेरा ही होता है, वह मेरे ही पास रहता है । '
'तो ब्राह्मण, जो तुम मुझ अक्रोध करने वाले पर क्रोध करते हो, मुझे गाली न देने वाले को गाली देते हो, वह मैं ग्रहण नहीं करता। वह तुम्हारा ही हो, तुम्हारे पास रहे।' ऐसा कहकर वे दुर्जेय संग्राम जीत लेते हैं और अक्कोस भारद्वाज बुद्ध, धर्म और संघ की शरण में जाता है।
अग्गिक भारद्वाज ने भगवान को देखकर जब यह कहा कि 'वहीं रुको, मुण्डक, वहीं रुक जा श्रमणक और वहीं रुक जा वसलक, तो भगवान बुद्ध ने कुछ भी बुरा न मानकर वृषल कौन कहलाता है और वृषलकारक धर्म कौन-कौन हैं - इन पर उपदेश दिया। और अंत में अग्गिक भारद्वाज भी भगवान का उपासक हुआ। भगवान ने विस्तार से बताया कि जो क्रोध करता है, जिसकी दृष्टि विपन्न है, जो मायावी है, जो प्राणिहिंसा करता है, चोरी करता है, पथिकों को लूटता है, मारता है, जो ऋण लेकर अदा नहीं करता, जो झूठी गवाही देता है, जो परदारगमन करता है, जो बूढ़े माता-पिता की सेवा नहीं करता, जो उन पर क्रोध करता है, उन्हें गाली देता है, जो पापकर्म कर छिपाता है, जो झूठ बोलकर श्रमण, ब्राह्मण तथा अन्य भिखारियों को ठगता है वह वृषल है और के अंत में उन्होंने यह कह कर कि -
न जच्चा वसलो होति, न जच्चा होति ब्राह्मणो । कम्मुना वसलो होति, कम्मुना होति ब्राह्मणो ।
जन्म से कोई वृषल या ब्राह्मण नहीं होता । अपितु कर्म से वृषल और ब्राह्मण होता है। इस प्रकार समाज में फैले जातिवाद के विरुद्ध सिंहनाद किया।
एक विशुद्ध वैज्ञानिक की तरह उन्होंने जातिवाद के बारे में अपने विचार रखे। उन्होंने देखा कि जातिवाद के चलते समाज में बहुसंख्य लोगों का मुट्ठी भर लोग शोषण करते हैं, उन्हें उनके अधिकार से वंचित करते हैं और मनुष्य - मनुष्य में भ्रातृत्व, प्रेमभाव और सहिष्णुता होनी चाहिए वह नहीं है। उन्होंने जातिवाद पर कड़ा प्रहार किया, कई सुत्तों में उदाहरण देकर लोगों को समझाने का प्रयत्न किया कि सब मनुष्य बराबर हैं, जन्म के आधार पर ऊँच-नीच का भेद करना अवैज्ञानिक है। मनुष्य बड़ा या छोटा अपने कर्म के कारण होता है। इस तरह उन्होंने जन्म को महत्त्व न देकर कर्म को महत्त्व दिया ।
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