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166 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला सभी पात्रों को कैलाश-शिखर' पर मिलाकर एक सम्मिलित कुटुम्ब का रूप दे दिया है जो बौद्ध-दर्शन के विश्व-मैत्री के भाव से प्रभावित है। 'लहर' काव्य की कविताओं 'अरी वरुणा की शांत कछार' और 'जगती की मंगलमयी उषा बन' में 'सारनाथ की पवित्र भूमि को विश्ववाणी का विहार' बनाने की कामना है और महात्मा बुद्ध को करुणा की साकार प्रतिमा तथा ऋषिपत्तन को आनंद से विभोर करने वाला कहा है। उन्हें तप की तारुण्यमयी प्रतिभा तथा प्रज्ञा-पारमिता की गरिमा कहा है तथा इस व्यथित-विश्व की चेतना की साकार-मूर्ति एवं मानवता-प्रेम का संदेशवाहक कहा है।
__इस प्रकार प्रसाद-साहित्य में बौद्ध-दर्शन के कई मर्म अनुस्यूत हैं जो अनन्त कोलाहल में फंसी संकुचित दृष्टि वाली आधुनिक युग की इस 'अभिनव मानव प्रजा-सृष्टि को 'भूमा' के मधुमय दान' की ओर बढाते हैं, और 'शक्ति के समस्त बिखरे हए कणों को संकलित कर मानवता को विजयिनी बनाने की ओर अग्रसर करते हैं। निश्छल प्रेम-कथा कहते हुए मानवता का जयघोष करने वाले महाकवि प्रसाद जीवन की सुदृढ़ भाव-भूमि पर स्थित होकर मानस की गहराई से दर्शन. की व्यावहारिकता सिद्ध करते हैं। “उनके बुद्ध इसलिए बुद्ध है, कि वे मानवता के आदर्शो की पूर्ण मूर्ति हैं।'' प्रसाद ने जिन दार्शनिक विचारों को मानवता के अनुकूल एवं समाज हेतु समीचीन समझा है, उन्हें अपने साहित्य में समाहित किया है। उनकी प्रत्येक विचारधारा व्यावहारिक जीवन पर आधारित है और मानवता के चरम उत्कर्ष की विधायक है।
- हिन्दी विभाग जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
1. अजातशत्रु, भूमिका, पृ. 3
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