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________________ सौन्दरनन्द महाकाव्य में जीवनोत्थान के सूत्र डॉ. यादराम मीना भारतवर्ष में ऋग्वैदिक युग से ही सर्जनधर्मी विवेकी मानव ने जीवन-उत्थान के लिए चिन्तन प्रारम्भ कर दिया था । कठोपनिषद् में श्रेयस् एवं प्रेयस् का चिन्तन इसका साक्षी है। श्रेयस् आत्मा के लिए कल्याणकारी है, जबकि प्रेयस् हमें विषयभोगों की ओर आकर्षित करता है, किन्तु हमारा हित नहीं करता । वह हमें प्रिय लगता है। श्रेयस् एवं प्रेयस् के स्वरूपगत भेद का प्रतिपादन प्रो. गोविन्दचन्द्र पाण्डे ने इस प्रकार किया है - "आत्मज्ञान के द्वारा आत्मावस्थिति या मुक्ति ही श्रेयस् है । श्रेयस् - साधन प्रत्यंगमुख, आत्माभिमुख यात्रा है, जो मृत्युलोक का अतिक्रमण कराती है, जबकि प्रेयस् साधन बहिर्मुखी प्रवृत्ति है, जो बार - बार मनुष्य को मृत्यु के मुख में ले जाती है।"" जीवन का वास्तविक उत्थान प्रेयस् से नहीं श्रेयस् से होता है । दुःख से आत्यन्तिक मुक्ति प्रेयोमार्ग से नहीं श्रेयोमार्ग से होती है। भारतीय दर्शन-परम्परा में चार्वाक को छोड़कर सभी दर्शन संसार को दुःखमय मानते हैं, दुःखों के कारणों का निरूपण करते हैं तथा उनसे मुक्ति के उपाय में अनेक सूत्रों का प्रतिपादन करते हैं। संसार की दुःखमयता के विषय में महात्मा बुद्ध का कथन है - "इस संसार में दुःखियों ने जितने आँसू बहाये हैं, उनका पानी महासागर में जितना जल है, उससे भी अधिक है। "2 इस संसार की दुःखमय स्थिति का जो संकेत महात्मा बुद्ध ने अपने प्रथम आर्य-सत्य में किया है, उसे भारतीय दर्शन के साथ-साथ पाश्चात्त्य परम्परा ने भी ध्वनिमत से स्वीकार किया है । बुद्ध ने दुःख के कारण, उसके निवारण एवं निवारण के उपाय को भी आर्यसत्य के रूप में प्रतिपादित किया है। अश्वघोष ने सौन्दरनन्द महाकाव्य में बुद्ध के उपदेशों का यथाप्रसंग जीवनोत्थान सूत्रों के रूप में प्रतिपादन किया है। उनसे मानव-जीवन को श्रेयोमार्ग में ले जाने हेतु 1. मूल्य मीमांसा - प्रो. गोविन्द चन्द्र पाण्डे, 2 संयुक्तनिकाय - 3.25 Jain Education International पृ. 4 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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