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________________ बौद्ध धर्म एवं कला : पारस्परिक अवदान * 153 - व्यष्टि और समष्टि। यह बौद्ध धर्म-दर्शन का ही प्रभाव है कि अजन्ता की कलाकृतियों में ये दोनों पक्ष गुम्फित हैं। 'अजन्ता की चित्र-रचना में अक्षय सौन्दर्य और अमिट कलातृष्णा का एकमात्र रहस्य भी यही दिखायी देता है कि उसके निर्माता ऐसे जीवन्मुक्त सन्त, फकीर और संन्यासी थे, जिन्होंने उन तमसाच्छन्न गुफाओं में दीपक जलाकर या मशालों के प्रकाश में दिन-रात निरन्तर श्रम-साधना करके विश्व को चकित कर देने वाले इतने महान् कला मण्डप का निर्माण किया। 23 इन बौद्ध कलाकृतियों ने अन्य कलाओं पर अपनी छाप छोड़ी है। अजन्ता की चित्रशैली का प्रभाव बाघ, सित्तनवासल, एलोरा, पुनरुत्थान कला एवं आधुनिक कला पर भी पड़ा। विषयवस्तु बौद्ध धर्म से सम्बद्ध नहीं होने पर भी शैली की अनुरूपता अवश्य दिखाई देती है। भारत का राष्ट्रीय चिह्न भी बौद्ध कलाकृति से निःसृत है जो बौद्धानुराग का ही परिणाम है। स्पष्ट है कि बौद्ध धर्म ने कला को ही नहीं, देश को भी राष्ट्रीय चिह्न प्रदान किया है। गुप्तकाल को कला-इतिहास में स्वर्णिम काल माना गया है। इस काल की बौद्ध मूर्तियां आद्योपान्त आध्यात्मिक सौन्दर्य से पूर्ण हैं। इनमें बुद्ध के शान्त तथा निःस्पृह भाव को व्यक्त करने में अद्भुत सफलता मिली है। इसकी आध्यात्मिक अभिव्यक्ति, गम्भीर मुस्कान एवं शान्त ध्यानमग्न मुद्रा भारतीय कला की सर्वोच्च सफलता का प्रदर्शन करती है। इसी काल को 'क्लासिकल युग' (Classical Age) अथवा भारत का 'पेरीक्लीन युग' (Periclean Age of India) आदि नामों से जाना जाता है। रसदृष्टि भी गुप्तकला की प्रमुख विशेषता है। कला वस्तुओं में अब भावों की श्रेष्ठता दिखाई देती थी चाहे वे सजीव हों अथवा प्राणहीन।24 . विश्व के देशों को अहिंसा, करुणा, प्राणिमात्र पद दया आदि का सन्देश भारत ने बौद्ध धर्म के माध्यम से ही दिया। शताब्दियों पूर्व बुद्ध ने जिन सिद्धान्तों एवं आदर्शों का प्रतिपादन किया था वे आज के वैज्ञानिक युग में भी अपनी मान्यता बनाए हुए हैं। भारत के बाहर भी अन्य देश उनके परिपालन में प्रयत्नरत हैं। भारत ने अपने राजचिह्न के रूप में बौद्ध प्रतीक को ही ग्रहण किया है तथा वह शान्ति एवं सह-अस्तित्व के सिद्धान्तों का पोषक बना हुआ है। - उपर्युक्त विवेचना पर पुनर्दष्टि डालें तो बौद्ध धर्म 'कला' के लिए और बौद्ध कला बौद्ध धर्म के लिए सहायक सिद्ध हुई है। दोनों की पारस्परिक अन्तर्निर्भरता एवं अन्तः सम्बन्ध ही उनकी जीवन्तता है, स्पन्दन है। बौद्ध कला एवं धर्म - दोनों ने ही 23. भारतीय चित्रकला, पृ. 118 24. 'Rasadrshti (Correct concept of sentiment or emotion) was another significant feature of the Gupta art, the Supremacy of sentiments was now recognized in the art objects, whether they were animate or inanimate. - S.R. Goyal, Indian Art of the Gupta age, Kusumanjali, Book World, Jodhpur, 2000p.164. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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