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152 बौद्ध धर्म - दर्शन, संस्कृति और कला
प्रतीकात्मक तथ्यों का निर्वाह हुआ है । गान्धार कला के अन्तर्गत 'बामियान' में बुद्ध की आदमकद से भी 20 गुना विशाल प्रतिमा का निर्माण भी एक सर्वथा नव्य परम्परा है।
बौद्ध धर्म में वैचारिक मतभेद के फलस्वरूप समय-समय पर विभिन्न नवीनीकरण होते रहे हैं। इन परिवर्तनों ने कला को भी नवीन परिभाषाएं दी हैं । हीनयान और महायान सम्प्रदाय के विभाजन से बौद्ध कलाओं में परिवर्तन आया। 21 जहाँ हीनयान विचारधारा से भारत में स्तूप अस्तित्व में आए, वहीं महायान के प्रभाव से बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमा तथा चित्र अस्तित्व में आए। गुप्तकाल में बौद्धकला पर पूर्णतया महायान सम्प्रदाय का आधिपत्य हो गया था । महायान सम्पद्रीय से संबंधित बौद्धकला, भारतीय कला जगत् के लिए वरदान सिद्ध हुई । हीनयान विचारधारा से प्रभावित प्रतीक गूढ़ार्थक होने से कम प्रभावशाली थे। 22 महायान के उदय से कथानकों में ऊँचे आदर्श की भावना कथा-विषयों में रोचकता एवं बुद्ध की कल्पना में विभिन्न मुद्राओं में मानुषी रूप का समावेश हुआ। अजन्ता की गुफा में हीनयान एवं महायान दोनों का प्रभाव है। महायान सम्प्रदाय के उदय से पूर्व जहाँ बुद्ध को प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया जाता था वहीं अब उन प्रतीकों ने मानुषी रूप ले लिया था। मनुष्य रूप के साथ ही आसन एवं स्थानक मुद्राएँ एवं विभिन्न हस्त मुद्राएँ भी इससे जुड़ जाती हैं। इस प्रकार बौद्ध धर्म में हो रहे नवीनीकरण, बौद्ध कला में भी नवीन अध्याय जोड़ते गए। बौद्ध धर्म में जो-जो परिवर्तन हुए उसकी स्पष्ट छाप बौद्ध कला पर दिखाई देती है।
ऊपर उल्लेख किए गए चारों योगदान के अतिरिक्त भी हम श्रेष्ठ भारतीय कलाकृतियों की श्रेणी में बौद्ध कला की प्रधानता देखते हैं। अजन्ता के चित्र बौद्ध धर्म की देन हैं जो सर्वश्रेष्ठ चित्रकला का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये गुफाएँ चित्रकला, मूर्तिकला एवं वास्तुकला का अपूर्व संगम हैं। बुद्ध के जीवन-दर्शन के दो आधार रहे हैं
21. किंचित् परिवर्तन कुछ हद तक बौद्ध धर्म को पतन की ओर उन्मुख कर रहे थे, किन्तु कलाओं के लिए वरदान सिद्ध हुए हैं। महायानवाद की कल्पना ने जहाँ बौद्ध धर्म को विस्तृत तो किया, किन्तु आगे चलकर गुह्यसमाज ने इसे खण्डित कर दिया। इन परिवर्तनों ने किस प्रकार बौद्ध धर्म को क्षति पहुँचायी, देखिए - महापंडित राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक 'भारत में बौद्ध धर्म का उत्थान और पतन । '
22. 'हीनयान की स्तूप, बोधिवृक्ष आदि की प्रतीकात्मक कल्पना चित्रकला में गुप्तकाल के पूर्व ही चित्रित की गई। इसी प्रकार विभिन्न कला केन्द्रों में स्तूप और बोधिवृक्ष द्वारा बुद्ध उपस्थिति का प्रतीक एवं सिंहासन, छत्र आदि विभिन्न प्रतीकों का शिल्पांकन किया गया। अजन्ता में इनसे संबंधित अल्पसंख्यक चित्र है। ये चित्र स्थूल रूप में सिर्फ बुद्ध की उपस्थिति का संकेत करते हैं, किन्तु इनमें बुद्ध के महान आदर्श - भावों को नहीं देखा जा सकता। बुद्ध की विचारधारा के चार आर्य सत्य, बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग, जिसके सम्यक् शब्द में उचित कार्य की भावना समाहित है, जो इन चित्रों में नहीं ढूंढे जा सकते। इनके इतिरिक्त बुद्ध के दशशील की विचारधारा भी इन प्रतीकों में समाहित नहीं है।' गुप्तकालीन बौद्ध चित्रकला, पृ. 73
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