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बौद्ध धर्म एवं कला : पारस्परिक अवदान 151
बौद्ध धर्म की कला जगत् को दूसरी अनुपम देन है - 'बौद्ध विषयवस्तु' । विषय वस्तु की भिन्नता प्रत्येक देश और काल में अपेक्षणीय रही है। बौद्ध धर्म की नवीन विचारधारा ने कलाकारों को नवोन्मेष प्रदान किया। बौद्ध विचारधारा ने बुद्धचरित, जातक (अवदान) कथाएं, स्तूप पूजा, बोधिवृक्ष पूजा, बुद्ध के अनुगामी के रूप में देवांकन, विभिन्न मुद्राएं यथा धर्मचक्र प्रवर्तन, अभय, वरद, भूमिस्पर्श, ध्यान, व्याख्यान, महापरिनिर्वाण मुद्रा इत्यादि, विभिन्न हस्त मुद्राएँ यथा - शांति की हस्त मुद्रा, दण्ड हस्त मुद्रा, धर्मचक्र मुद्रा, नीलकमल धारण किए हस्त मुद्रा, शिखर हस्त मुद्रा आदि, विभिन्न प्रतीकात्मक अंकन एवं आलंकारिक अभिप्राय इत्यादि - विषयवस्तु प्रदान कर कलाकोष को समृद्ध बनाया है। बौद्ध विषयवस्तु का आश्रय पाकर कला आध्यामिकता के ऊँचे प्रतिमान का पर्यायवाची बन गयी। बौद्ध धर्म की अन्त: प्रेरणाओं
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ही बौद्ध कला को धार्मिक रंग, रूप, वाणी और व्याप्ति प्रदान की है। गांधार कला का विषय बौद्ध है और इस कला की सांस्कृतिक आत्मा पूर्णतया बौद्ध धर्म से ही आबद्ध है। प्रत्येक काल में बौद्ध विषयवस्तु एक अद्भुत शैली के साथ कला एवं जनसम्पर्क में आयी है। चित्रकारों को बौद्ध धर्म ने नए भाव दिए ।
बौद्ध धर्म की तीसरी देन है - कुषाण कालीन 'मथुरा' और 'गांधार' शैली। दोनों शैलियाँ भारतीय कला के इतिहास में नए आयाम जोड़ती हैं। सर्वप्रथम बुद्ध मूर्ति का निर्माण कुषाण (सम्राट कनिष्क के) काल में ही हुआ।" 'अवलोकितेश्वर बोधिसत्त्व' तथा 'कश्यप बुद्ध' की मूर्तियाँ मथुरा कला की देन हैं । सर्वप्रथम बुद्ध की पूर्णरूपेण भारतीय प्रतिमा बनाने का श्रेय भी मथुरा सम्प्रदाय को प्राप्त है। 20 गान्धार कला एक मात्र बुद्ध की लीलाओं से अनुप्राणित है। यहाँ बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित 61 दृश्यों का अंकन हुआ है । यथा - 'मायादेवी का स्वप्न' 'जेतवन दान', 'धातुओं का बँटवारा ' आदि । इन बुद्ध मूर्तियों को बनाते समय बौद्ध धर्म की परम्परा और विश्वासों के
19. (क) डॉ. सन्ध्या, पाण्डेय ने भी अपनी पुस्तक 'गुप्तकालीन बौद्ध चित्रकला' में यही काल उल्लेखित किया है। देखिए पृ. 109
(ख) 'कनिष्क के समय अर्थात् बुद्ध से चार सदी बाद पहले-पहल बुद्ध की प्रतिमा (मूर्ति) बनायी गयी । ' - महापंडित राहुल सांकृत्यायन, भारत में बौद्ध धर्म का उत्थान और पतन, सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली, तृतीय संस्करण, 2005 पृ. 9
20. बुद्ध की प्रारम्भिक प्रतिमा का शिल्पांकन मथुरा कला में माना गया है, किन्तु कुछ विद्वान बुद्ध प्रतिमा का प्रथमतः निर्माण गान्धार कला में मानते हैं। यह तो निर्विवाद अनुमान है कि बुद्ध प्रतिमा का आधार 'यक्ष' प्रतिमाएँ रही होंगी। प्रारम्भ में 'यक्ष' स्वरूप में से ही आभूषणों को हटाकर कुषाण काल में भारी शारीरिक सौष्ठव वाले बुद्ध अथवा बोधिसत्त्व बनाए गए। बाद में इसी स्वरूप में बुद्धत्व के आधार पर कल्पनानुसार परिष्कृति की गई। धीरे-धीरे इन प्रतिमाओं एवं चित्रों में जो 'यक्ष' स्वरूप का प्रभाव था, वह जाता रहा और गुप्तकाल में समाप्त हो गया। अतः विद्वानों का बहुमत मथुरा कला के कलाकारों को ही प्रथम भारतीय बुद्ध प्रतिमा बनाने का श्रेय प्रदान करने का पक्षधर है।
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