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________________ बौद्ध धर्म एवं कला : पारस्परिक अवदान - 149 होता है, इसी भाँति भगवान् बुद्ध कामदेव की सेना के मध्य निर्विकार भाव से सांसारिक दुःखों को दूर करने के लिए वज्रासन मुद्रा (भूमिस्पर्श मुद्रा) में तल्लीन हैं। बुद्ध की मनोवैज्ञानिक छवि का यह चित्रण संसार में रहते हुए सांसारिक विषयों से निर्लिप्त रहने की ओर भी संकेत है। 'अष्टांगिक मार्ग' की संकल्पना यहाँ चरितार्थ होती है। इनके अतिरिक्त कला न बौद्ध धर्म के लिए 'भाषा' की भूमिका भी निभाई है और आदर्श की भूमिका भी। कलाकार ने तत्कालीन धार्मिक मान्यताओं को कलाकृतियों में ढालकर कला के आदर्श को नई भाषा प्रदान की है। प्रारम्भिक काल में भगवान बुद्ध की उपस्थिति मानव रूप में कहीं भी उत्कीर्ण नहीं की गई है बल्कि प्रतीक माध्यमों यथा-रिक्त सिंहासन, धर्मचक्र, स्वस्तिक, चिह्न चरण चिह्न, कमल आदि धार्मिक संकेतों से दर्शायी गयी है। बुद्ध स्वयं की प्रतिमा बनवाने के पक्ष में नहीं थे, इसी आदेश के अनुरूप प्रारम्भ में बुद्ध-मानवाकृति के स्थानापन्न ये प्रतीक अस्तित्व में आए। बाद में महायान सम्प्रदाय के अस्तित्व में आने पर कुषाण काल में बुद्ध की मानव प्रतिमाएँ बनने लगी। अशोककालीन मौर्य कलाओं की प्रतीकात्मक भाषा आज भी प्रासंगिक है। सारनाथ से प्राप्त अशोक-स्तम्भ-शीर्ष हमारा राष्ट्रीय चिह्न है। इसका प्रतीकात्मक वैभव इसे यह योग्यता प्रदान करता है। मौर्यकालीन स्तम्भों के शीर्ष पर प्रयुक्त 'चक्र' चक्रवर्ती सम्राट् के रूप में बुद्ध को प्रदर्शित करता है। यह चक्र बुद्ध की शिक्षाओं का भी संकेत देता है। प्रत्येक पशु, पक्षी अथवा आकृति किसी न किसी तथ्य की ओर संकेत है। 'स्तूप, चैत्य, चक्र, गुहा आदि सभी उपकरणों में भावनाएं अंकित हुई हैं। यहीं कला और धर्म तथा जीवन और साधना का समन्वय होता है। बौद्धाचार्यों ने इस समन्वित रूप को भलीभाँति सुरक्षित रखा है। 17 बौद्ध कला अपने आप में एक सम्पूर्ण एवं सरस भाषा है। यह ऐसी भाषा है जिसने बौद्ध धर्म को भारत की सीमा से मुक्त कर मध्य एशिया, चीन, कोरिया, जापान, लंका, दक्षिणी-पूर्वी एशिया आदि के विभिन्न भागों में पहुँचा दिया। बौद्ध धर्म के सर्वतोमुखी निनाद से विभिन्न देशों में भारतीय संस्कृति का भी प्रसार हुआ। स्पष्ट है कि बौद्ध धर्म के प्रचार में कला ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कलाओं के माध्यम से बौद्ध धर्म ने लोक जन-जीवन की चेतना के स्तर तक सुगम पहुँच बनायी है। कला के स्पर्श से ही बौद्ध धर्म व्यापक आधार प्राप्त कर सका। बौद्ध धर्म, संस्कृति, दर्शन, आदर्श एवं जीवन - सभी बौद्ध कला में सजीव हो उठे हैं। बौद्ध कला ने केवल बौद्ध धर्म के ही नहीं, अपितु भारत के धार्मिक एवं सांस्कृतिक उत्थान 16. Jeannine Auboyer, Buddha (A Pictorial history of his life and Legacy), Roli Books International, new Delhi, 1983, p. 20 17. भागचन्द्र जैन भास्कर',बौद्ध संस्कृति का इतिहास, बुद्ध ग्रन्थमाला-3,आलोक प्रकाशन, नागपुर, 1972, पृ. 387 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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