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148 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला समुदाय के लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं। उन्होंने कला को अपढ़ समाज को शिक्षित करने का लोकप्रिय एवं परम्परागत साधन माना है। भगवान बुद्ध की शिक्षाओं, जातक कथाओं एवं बुद्ध के जीवन दृश्यों यथा - 'श्वेत गज के रूप में बुद्ध का अवतरण' 'राहुल का जन्म' 'हाथियों द्वारा बोधिवृक्ष की पूजा' 'कपिलवस्तु पुनरागमन', 'बुद्ध के शरीर व अवशेषों का बँटवारा"धर्मचक्रप्रवर्तन' आदि का वर्णन इन कलाओं में प्रदर्शित है। बौद्ध कलाओं की आध्यात्मिक शक्ति और उत्कृष्ट रचनात्मकता आज भी आकर्षण का केन्द्र है। स्थापत्य, शिल्प अथवा चित्र - किसी भी रूप में ये हमें बुद्ध एवं उनके दर्शन की ओर खींचती हैं।
बौद्ध कला तत्कालीन धर्म और दर्शन का स्पष्ट रूप परिलक्षित करती है। यह तीसरी विशेषता बौद्ध धर्म-दर्शन एवं कला का एकत्र सम्मेलन बन गई है। ये सब यहाँ एकरूप हो गए हैं। मैत्रेय' (बौद्ध धर्मानुसार भविष्य में अवतार लेने वाले बुद्ध) की कल्पना को बौद्ध चित्रों एवं मूर्तियों में मूर्त रूप मिला है। मैत्रेय की कलाकृति में सौन्दर्य पक्ष के साथ आध्यात्मिक भावबोध की भी सहज प्रस्तुति है। इसी प्रकार बोधिसत्त्व पद्मपाणि के चित्रों में निस्सीम करुणा और सौहार्द्र प्रस्फुटित है। 'सर्वजनहित' और 'सर्वजनसुख' के उद्देश्य की संकल्पना वाले बुद्ध पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति में समर्थ होते हुए भी स्वयं तब तक निर्वाण ग्रहण नहीं करेंगे और अपने पुण्यों से दूसरों को उपकृत करते रहेंगे, जब तक कि ब्रह्माण्ड के सभी व्यक्ति निर्वाण को प्राप्त न कर लें। ऐसी उदार प्रवृत्ति, आदर्श और जीवन दर्शन की स्पष्ट आभा 'बोधिसत्त्व पद्मपाणि' में उद्भासित होती है। वज्रपाणि बुद्ध' को पाप एवं दुष्टों के विनाशक के रूप में दर्शाया गया है। एक अन्य दृष्टान्त 'मार-विजय' के उत्कीर्णन अथवा चित्रण में भी बौद्ध धर्म एवं दर्शन के उच्च प्रतिमानों का गुम्फन है। कमलपत्र जलराशि से सराबोर होते हुए भी गीला नहीं
13. भारतीय कला के आयाम, पूर्वोदय प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 1984 पृ. 39-40 14. 'इसमें भगवान् बुद्ध के पूर्व-जन्मों की कथाएँ हैं। भगवान् बुद्ध के जीवन में अनेक बार ऐसे अवसर
आये, जब कि तत्कालीन किसी घटना को देखकर उन्हें अपने पूर्वजन्म की घटनाएं याद हो आती थीं। कुछ देर तक तन्मय हो कर उस पर विचार करते और फिर उपस्थित श्रोताओं को सुनाकर वर्तमान के साथ अतीत का मेल बैठा दिया करते थे। यह उनकी एक जातक कथा बन जाती थी।'- जातकमाला
(अनु.-डॉ. जगदीश चन्द्र मिश्र, चौखम्भा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी, 1987) भूमिका, पृ.7 15. 'बौद्ध धर्मानुसार सृष्टि की रचना व परिवर्तन पाँच बार होता है, जिन्हें सम्बद्ध बोधिसत्त्व अपने ध्यानी
बुद्ध से शक्ति एवं प्रेरणा प्राप्त कर रचता है एवं सम्बद्ध मानुषी बुद्ध पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। बौद्धमतानुसार यह चतुर्थ विश्व हैं, जिसमें मानुषी बुद्ध शाक्यसिंह गौतम एवं इस संसार का संचालन अवलोकितेश्वर अर्थात पद्मपाणि कर रहे हैं। गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के लगभग 5000 वर्ष पश्चात् बोधिसत्त्व विश्वपाणि पुनः पाँची सृष्टि की रचना करेंगे और मैत्रेय मानुषी बुद्ध के रूप में अवतरित होंगे। - डॉ . सन्ध्या पाण्डेय, गुप्तकालीन बौद्ध चित्रकला, परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 1991, पृ. 119
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