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________________ 146 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला शताब्दी बहुत महत्त्वपूर्ण मानी गयी है, क्योंकि इस शताब्दी में सभी देशों में कुछ ऐसे मनीषी एवं महापुरुष हुए, जिन्होंने भविष्य के लिए नूतन आलोक दिया। इसी काल में महात्मा बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म की स्थापना की गयी थी। ज्ञान-प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेशों द्वारा मनुष्य के दुःखों को दूर करने का मार्ग दिखलाया। ये बौद्ध धर्म के सिद्धान्त के रूप में विज्ञेय हैं। परवर्ती अनुयायियों ने सिद्धान्त सूत्रों की विवेचना कर इसे दर्शन के रूप में प्रतिष्ठित किया। कालान्तर में बौद्ध कला भी एक चमत्कार के रूप में सामने आई, जिसने सम्पूर्ण भारतीय कला को एक आदर्श रूप प्रदान किया। बौद्ध धर्म एवं कला का समन्वय कब और किन परिस्थितियों में स्थापित हुआ, इसका स्पष्ट संकेत तो नहीं मिलता है, किन्तु इस सन्दर्भ में इतना तो प्रत्यक्ष है कि आरम्भिक व्यावहारिक बौद्ध दृष्टिकोण कला के पक्ष में नहीं था। प्रारम्भिक दृष्टिकोण के अनुसार कला नाम और रूप की दुनिया है, जो हमें तात्कालिक सुख देने वाली है। जबकि निर्वाण वह स्थिति है जो इन सबसे निर्मुक्त है। इस दृष्टिकोण के बावजूद भी भारतीय कला का जो स्वरूप बौद्ध कला में देखने को मिलता है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है। ये कलाकृतियाँ सौन्दर्यशास्त्र के उच्चतम मानदण्डों पर खरी उतरती हैं। मौर्य, शुंग, सातवाहन, कुषाण, गुप्त काल (लगभग चौथी शताब्दी ई.पू. - छठी शताब्दी ई.) में जहाँ बौद्ध धर्म का अत्यधिक विकास हुआ वहीं बौद्ध कला भी अपने उन्नत शिखर पर पहुँच चुकी थी। मूर्ति, स्थापत्य, चित्र, साहित्य - प्रत्येक क्षेत्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन से सम्पृक्त हो गया था। कार्ले, कान्हेरी, भाजा, अजन्ता - जहाँ भी नज़र डालें बौद्ध कला का ही परचम लहराता नज़र आएगा। इससे यह ध्वनित होता है कि बौद्ध कला एवं बौद्ध धर्म के मध्य एक ऐसा उभयनिष्ठ तत्त्व अवश्य है जो इन्हें जोड़ता है। इन दोनों दृष्टिकोणों के मध्य जो भेद है वह वस्तुतः विभ्रम है। बुद्ध ने भी इस भेद-अभेद पर अवश्य चिन्तना की होगी और अन्त में उन्होंने अभेद को ही विशिष्ट पाया होगा। इसीलिए उन्होंने कालान्तर में बौद्ध भिक्षुओं के निवास पर चरण चित्रों की अनुमति प्रदान की। बुद्धघोष ने कला को मस्तिष्क की सृजनात्मक स्थिति से उद्भूत माना है।' प्रारम्भ में बौद्ध दृष्टिकोण भले ही कला के पक्ष में नहीं रहा हो, किन्तु कालान्तर में कला और बौद्ध धर्म के मध्य परस्पर साहचर्य मूलक सम्बन्ध स्थापित हुआ और दोनों ने एक दूसरे के विकास में योगदान किया है। बौद्ध धर्म ने कला को समृद्ध बनाया है तो कला ने बौद्ध धर्म को विशिष्ट आलोक प्रदान किया है। बौद्ध धर्म को कला का अवदान बौद्ध धर्म के विकास में कला का विशिष्ट योगदान रहा है। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में कला ने माध्यम के रूप में अपनी महती भूमिका निभाई है। 9. S.N. Dasgupta, Fundamentals of Indian Art, Bhartiya Vidya Bhawan, Bombay, 1954, pp.95-96 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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