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________________ बौद्ध योग एवं उसकी उपादेयता * 143 वर्तमान समय में भी योग एवं ध्यान की उतनी ही प्रासङ्गिकता है जितनी प्राचीनकाल में थी, बल्कि आधुनिक काल में इसकी महत्ता अत्यधिक बढ़ गई है। आज के व्यस्त जीवन में मन विचारों, कल्पनाओं, स्मृतियों, वृत्तियों, कामनाओं और वासनाओं से व्याकुल रहता है, जिनकी निवृत्ति के लिए मन का निरोध आवश्यक प्रतीत होता है। आज भौतिक सुखों से उत्पन्न मानसिक अशान्ति के निराकरण के लिए भारतीय ही क्या पाश्चात्त्य देश भी योग एवं ध्यान की शरण में आने को लालायित हैं। योग से चित्त एकाग्र होता है। चित्त की एकाग्रता का प्रबलतम एवं सर्वोत्तम साधन है - ध्यान। ध्यान से मन की चंचलता, अस्थिरता, अशान्ति तथा व्यग्रता का नाश होता है तथा चैतसिक शान्ति एवं आनन्द का अनुभव होता है। भगवान बुद्ध द्वारा प्रतिपादित ध्यान-साधना पद्धति 'विपश्यना' जो भारत से प्रायः लुप्त हो चुकी थी, को श्री सत्यनारायण गोयनका द्वारा बर्मा से लाकर पुनजोवित करने का प्रयास किया गया है, जिससे आज यह ध्यान पद्धति जन-मानस में लोकप्रिय हो रही है। इसके लिए समस्त मानव जाति श्री गोयनका जी की ऋणी रहेगी। - अतिथि अध्यापक, संस्कृत विभाग जयनारायणव्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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