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142 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला जप एवं स्वाध्याय का निषेध है तथा प्राणायाम (आयास पूर्वक श्वास प्रश्वास पर नियन्त्रण) को महत्त्व नहीं दिया गया है। किन्तु विपश्यना में मौन का विशेष महत्त्व है। विपश्यना में नियम से मौन रखा जाता है। बौद्ध योग का पातञ्जल योग से वैशिष्ट्य - महर्षि पतञ्जलि द्वारा रचित 'योगसूत्र' में प्रतिपादित योग पद्धति एवं बौद्धयोग में मान्य मुख्य भेदों का उल्लेख किया जा रहा है - ____1. पतञ्जलि के अनुसार योग का लक्ष्य चित्त की वृत्तियों का निरोध है, जबकि बौद्धमत में ध्यान-साधना का लक्ष्य चित्त का ही निरोध है।
2. पातञ्जल योग में समाधि सिद्धि के लिए ईश्वरवाचक प्रणव (ॐ) के उच्चारण का निर्देश है, जबकि बुद्ध शिक्षा में किसी शब्द के उच्चारण का निर्देश नहीं है। ___3. योगसूत्र में एक निर्विकार तत्त्व 'पुरुष' के बारे में परिकल्पना की गई है जो चित्त की समस्त क्रियाओं का साक्षी है। किन्तु बुद्ध ने पुरुष जैसे किसी तत्त्व को नहीं स्वीकारा, उनकी दृष्टि में तो शरीर मनोमय होता है।'
4. योगसूत्र' में नियमों के अन्तर्गत स्वाध्याय को भी स्वीकार किया गया है, जबकि बुद्ध सदा इस बात पर बल देते थे कि धर्म के सैद्धान्तिक पक्ष की जानकारी की अपेक्षा इसके वास्तविक आचरण का अधिक महत्त्व है। ___5. उदय एवं क्षय इन शब्दों का प्रयोग योगसूत्रकार ने कुछ धर्मों के उदय एवं नाश के लिए किया है, जबकि बुद्ध ने उदय-व्यय को शरीर में होने वाली संवेदनाओं (वेदनाओं) के साथ जोड़ा है।
6. पतञ्जलि के अनुसार कैवल्य प्राप्ति योग-साधना का परम लक्ष्य है। उनके अनुसार गुण (सत्त्व, रज, तम) शान्त होकर पुरुषार्थ शून्य हो जाते हैं तो कैवल्य होता है। बौद्ध मत में मुक्ति के लिए केवल या केवली शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो परममुक्ति की निर्मल और विशुद्ध अवस्था को दर्शाते हैं। केवली में पाँच विशेषताएँ होती हैं - अशैक्ष्य का शील, अशैक्ष्य की समाधि, विमुक्ति, वैसा ही ज्ञान और अर्हत् के धर्म-सम्बन्धी ज्ञान की पराकाष्ठा।"
8. योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः- योगसूत्र, 1.2 १. मनोमयेषु कायेषु सब्बत्थ पारंमि गतो - अप. थेर. 1.2.53 10. शौचसन्तोषतप:स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः। योगसूत्र-2.32 11. असेखेन च सीलेन, असेखेन समाधिना।
विमुत्तया च सम्पन्नो, आणेन च तथाविधो।। स वे पञ्चङ्गसम्पन्नो, पञ्च अङ्गे विवज्जयं। इमस्मिं धम्मविनये, केवली इति वुच्चतीति।। - अंगुत्तर निकाय 3.10.12
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