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________________ बौद्ध योग एवं उसकी उपादेयता * 139 आहार सेवन करता है। व्यवस्थान - चार धातुओं का व्यवस्थान नामक एक व्यवस्थान है। इस काया में पृथिवी धातु है, अप् धातु है, तेज-धातु है, वायु धातु है। इस प्रकार के व्यवस्थान से काय में “यह सत्त्व है, यह पुद्गल है, यह आत्मा है ऐसी संज्ञा नष्ट हो धातु संज्ञा ही उत्पन्न होती है। इस अवस्था में योगी शून्यता में अवगाहन करता है तथा महाप्रज्ञा को प्राप्त करता है। इन चालीस कर्मस्थानों में से केवल दस कसिणों की वृद्धि करनी चाहिए। परकायगता स्मृति और दस अशुभों की वृद्धि नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे कोई लाभ नहीं है। इसमें से दस कसिण, दस अशुभ, आनापान-स्मृति, कायगता स्मृति -केवल ये बाईस कर्मस्थान ही आलम्बन के निमित्त हैं, शेष में कुछ स्वभाव धर्म हैं और कुछ न निमित्त हैं और न स्वभाव-धर्म हैं। समाधि इन कर्मस्थानों में ध्यान से समाधि का उदय होता है। समाधि दो प्रकार की है - उपचार और अर्पणा। ध्यान की क्षीण अवस्था को उपचार समाधि कहते हैं। इस अवस्था में नीवरणों का प्रहाण होकर चित्त समाहित होता है। अर्पणा समाधि में वितर्क-विचार-प्रीति-सुख एकाग्रता इन अंगों का प्रादुर्भाव होकर वह सुदृढ़ हो जाता है। अर्पणा में कुशलता निम्न साधनों से प्राप्त की जा सकती है - 1. शरीर तथा चीवर की शुद्धता से। 2. श्रद्धांदि इन्द्रियों के समभाव प्रतिपादन से। 3. निमित्त कौशल से। 4. जिस समय चित्त का प्रग्रह करना हो उस समय चित्त का प्रग्रह करने से। 5. . जिस समय चित्त का निग्रह करना हो, उस समय चित्त का निग्रह करने से। 6. जिस समय चित्त का सम्प्रहर्षण करना हो, उस समय चित्त के सम्प्रहर्षण से। 7. जिस समय चित्त का उपेक्षाभाव होना चाहिए उस समय चित्त की उदासीन वृत्ति से। 8. ऐसे लोगों के परित्याग से जो अनेक कार्यों में व्याप्त रहते हैं। 9. समाधि-लाभी पुरुषों के आसेवन से। 10. समाधि-परायण होने से। ध्यान के चार भेद बौद्ध दर्शन में ध्यान के चार सोपान स्वीकृत हैं - 1. प्रथम ध्यान, 2. द्वितीय ध्यान, 3. तृतीय ध्यान, 4. चतुर्थ ध्यान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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