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________________ 9. विसुद्धिमग्ग में शान्ति के उपाय 129 मैत्री आदि भावना की प्रक्रिया में सर्वप्रथम स्वयं से, तत्पश्चात् घनिष्ठ मित्र से, उसके बाद घनिष्ठ मित्र के रूप में मध्यस्थ से और अन्त में मध्यस्थ के रूप में वै व्यक्ति से इस क्रम में ये भावनाएँ करने का कथन करते हैं। 15 वर्तमान शिक्षा प्रणाली में भौतिक विकास के लक्ष्य की प्रधानता है । आध्यात्मिकता का वर्तमान शिक्षा में नगण्य स्थान है। आज विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में परकल्याण और समत्व के ज्ञान से छात्र-छात्राओं का परिचय भी नहीं हो पाता है । परिणामतः बालकों में विनय, उच्छृंखलता, स्वार्थपरायणता और भौतिक अभिसिद्धि की भावना अपना स्थान बना लेती है। आगे चलकर ये ही अशान्ति के कारण बन जाते हैं । विसुद्धिमग्ग में इन दोषों के अपनयन हेतु शील, अनुस्मृति, मैत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा स्वरूप चार ब्रह्मविहार और विपश्यना का उल्लेख हुआ है। अतः विसुद्धिमग्ग के अहिंसा, क्षणिकता, मैत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा, शील आदि सभी सूत्र शान्ति के अमूल्य उपाय हैं। 15 वही, पृ. स. 150 151 Jain Education International शोध सहायक, बौद्ध अध्ययन केन्द्र जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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