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________________ विसुद्धिमग्ग में शान्ति के उपाय डॉ. हेमलता जैन विसुद्धिमग्ग के रचनाकार आचार्य बुद्धघोष का पालि-साहित्य की समृद्धि में महनीय योगदान है। गुरु महास्थविर रेवत से आदेश प्राप्त कर बुद्धघोष त्रिपिटिकों के विशेष अध्ययन के लिए श्रीलंका गए। वहाँ स्थविर संघपाल से सम्पूर्ण सिंहली अट्ठकथाओं और आचार्यो की परम्पराओं का ज्ञान प्राप्त किया। वे अट्ठकथाओं का अनुवाद सिंहली भाषा से मागधी भाषा में करने के इच्छुक थे। उनकी इच्छा को जानकर वहाँ के भिक्षुओं ने उनकी योग्यता की परीक्षा के लिए पालि में दों गाथाएँ दीं और उनकी व्याख्या करने को कहा । बुद्धघोष ने उन दो गाथाओं के व्याख्यानस्वरूप सम्पूर्ण त्रिपिटक के सिद्धान्तों का ही सार संकलन कर दिया और उसे 'विसुद्धिमग्ग' नाम दिया । बुद्धघोष का यह ग्रन्थ बौद्ध योगशास्त्र का स्वतन्त्र मौलिक प्रकरण ग्रन्थ है। विश्वशान्ति के उपाय इस ग्रन्थ में सूत्र रूप में ग्रथित हैं, जिनकी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महती आवश्यकता है। वे इस प्रकार हैं 1. 'एवं पियो पुथु अत्ता परेसं, तस्मा न हिंसे परमत्तकाये " अर्थात् सभी को अपना जीवन प्रिय है, अत: स्वार्थ के लिए दूसरे की हिंसा न करे । विसुद्धिमग्ग का यह सूत्र आज के हिंसामय वातावरण को दूर करने का अचूक उपाय है / अमोघ शस्त्र है। लोग स्वार्थ के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक हनन एवं दुरुपयोग कर रहे हैं। सौन्दर्य प्रसाधनों की प्राप्ति के लिए मूक प्राणियों की हिंसा कर रहे हैं और पर्यावरण-संतुलन को बिगाड़ रहे हैं। अतः ऐसे समय में उपर्युक्त सूत्र की उपयोगिता बढ जाती है। 1 विसुद्धिमग्ग, दुतियो भागो, सम्पादक एवं अनुवादक - स्वामी द्वारिकादास शास्त्री, बौद्ध भारती, वाराणसी, 2002. पृ. 150, 2 वही, पृ. 181 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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