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साम्प्रदायिक सद्भाव और बौद्ध धर्म - 123 तो समझ जाएगा कि सम्प्रदायवाद फैल रहा है। यह व्यक्ति के निज राग-द्वेष और लोभ का परिणाम है न कि उसके धर्म-सम्प्रदाय में ऐसा करने के लिए कहा गया है। इस समझ से युक्त व्यक्ति साम्प्रदायिक हिंसा में कभी सहयोगी नहीं बनेगा। सम्यक् संकल्प के अन्तर्गत बुरे, दूषित विचारों से मुक्त, रागरहित, द्वेषरहित एवं मोहरहित चिन्तन-मनन किया जाता है। ये सभी संकल्प सम्प्रदाय, सद्भाव में वृद्धि करते हैं। झूठ न बोलना, कटु भाषा बोलकर किसी का मन न दुःखाना, किसी की निन्दा न करना, किसी की चुगली न करना, मिथ्या बयान न करना, गाली-गलौज न करना, मधुर व सत्य बोलना सम्यक् वचन है। सम्यक् वाणी दो पक्षों को जोड़ने का काम करती है, प्रेमभाव, मैत्रीभाव, बंधुभाव बढ़ाने का काम करती है। साम्प्रदायिक हिंसा में दूसरों को क्षति पहुँचाना, किसी प्राणी की हत्या करना, व्यभिचार करना आदि कर्म किये जाते हैं। बुद्ध ने 'सम्यक् कर्म' के उपदेश में किसी भी परिस्थिति में इन असम्यक् कर्म के आचरण का निषेध किया है। बौद्ध धर्म के अनुयायी सम्राट अशोक के गिरनार शिलालेख के द्वादश अभिलेख
में सम्प्रदायवाद को रोकने हेतु कुछ सिद्धान्त दिए हैं, वे इस प्रकार हैं1. सब सम्प्रदायों में सार की वृद्धि हो। 2. इसका मूल आधार यह है कि वाणी पर नियन्त्रण बना रहे। बिना प्रसंग के अपने
सम्प्रदाय की प्रशंसा और अन्य सम्प्रदाय की निंदा न हो अथवा प्रसंग-विशेष में
साधारण सी चर्चा हो। 3. जिस किसी प्रसंग में अन्य सम्प्रदायों की प्रशंसा ही की जानी चाहिए। ऐसा
करता हुआ (व्यक्ति) अपने सम्प्रदाय की उन्नति करता है और अन्य सम्प्रदायों · पर उपकार करता है। . 4. इसके विपरीत करता हुआ (व्यक्ति) अपने सम्प्रदाय की हानि करता है और .
अन्य सम्प्रदायों का भी अपकार करता है। 5. क्योंकि जो कोई अपने सम्प्रदाय के प्रति आसक्ति होने के कारण अपने सम्प्रदाय
की प्रशंसा और अन्य सम्प्रदायों की निन्दा करने लगता है- वह ऐसा करता हुआ
वास्तव में अपने सम्प्रदाय की खूब बढ़चढ़ कर हानि करता है। 6. इसलिए मेल-जोल ही उत्तम है। लोग एक दूसरे के धर्म अर्थात् धारण करने
योग्य तत्त्व को सुनें और सुनायें।
4. सम्राट अशोक के अभिलेख, विपश्यना विशोधन विन्यास, इगतपुरी, 2008
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