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122 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला 25(1) में अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार देने का मतलब यह नहीं है कि किसी व्यक्ति को दूसरों का धर्म-परिवर्तन करने का अधिकार दे दिया गया है, बल्कि इसमें अपने धर्म की आस्थाओं का प्रचार कर अपने धर्म का प्रचार करने या उसे फैलाने का अधिकार दिया गया है।"
भारतीय संविधान में लोक मंगल को ध्यान में रखकर धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया है। सम्प्रदायवाद को रोकने एवं सम्प्रदाय सद्भाव हेतु कई कानूनी नियम बनाए गए हैं, जैसे
उपद्रवग्रस्त इलाकों में आयुधों की तलाशी लेना। • साम्प्रदायिक रूप से उपद्रवग्रस्त क्षेत्रों में व्यक्तियों के आचरण के सम्बन्ध में
आदेश देने के अधिकार। असद्भावपूर्ण रीति से कार्य करने वाले लोक सेवकों के लिए 144 की धारा लागू करना। साम्प्रदायिक सामंजस्य के संवर्धन और सांप्रदायिक हिंसा के निवारण कि लिए राज्य स्तरीय योजना। पीड़ितों को मुआवजा। पुनर्वास की व्यवस्था। प्रत्येक राज्य में साम्प्रदायिक सद्भाव योजना। शंका के आधार पर 'साम्प्रदायिक गड़बंडी' वाला क्षेत्र घोषित कर शीघ्र शान्ति
के उपाय करना। बौद्ध धर्म में निर्दिष्ट आन्तरिक उपाय
बुद्ध ने सम्प्रदाय-सद्भाव के आन्तरिक उपाय बतलाये हैं, जो इस प्रकार हैंमैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा ये चित्त की चार अवस्थाएँ ब्रह्मविहार कहलाती हैं। चित्तविशुद्धि के ये उत्तम साधन हैं। दूसरे जीवों के प्रति किस प्रकार सम्यक् व्यवहार करना चाहिए। इसका यह निदर्शन है। यह सम्यक् व्यवहार सम्प्रदाय सद्भाव को उत्पन्न करता है। इन चार भावनाओं से युक्त व्यक्ति समाज में सब प्राणियों के हित एवं सुख की कामना करता है, दूसरों के दुखों को दूर करने की चेष्टा करता है। जो सम्पन्न हैं, उनको देखकर वह प्रसन्न होता है, उनसे ईर्ष्या नहीं करता, सब प्राणियों के प्रति उसका समभाव होता है, किसी के साथ वह पक्षपात नहीं करता है। अतः ब्रह्मविहार आत्महित और परहित दोनों का साधन है।। प्रत्येक वस्तु, व्यक्ति तथा स्थिति का यथाभूत दर्शन, यथाभूत ज्ञान ही सम्यक् दृष्टि है। जो सम्यक् दृष्टि होगा, वह सभी सम्प्रदाय के यथाभूत दर्शन को जानेगा
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