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________________ साम्प्रदायिक सद्भाव और बौद्ध धर्म डॉ. श्वेता जैन साम्प्रदायिक द्वेष एवं हिंसा अहितकर भारतीय समाज में अनेक धर्म-सम्प्रदाय हैं-हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, यहूदी, जैन, बौद्ध आदि। इन सभी धर्म-सम्प्रदाय के प्रवर्तकों ने अपने दर्शन के साथ एक आदर्श आचार-प्रणाली भी व्यवस्थित की है। यदि इस आचार का पूर्णतः पालन किया जाता तो सभी हिन्दू बोधि सम्पन्न, सभी मुस्लिम समर्पित और शान्त, सभी सिक्ख शुद्ध हृदयी, सभी ईसाई समाजसेवक, सभी यहूदी उदार और सदाचारी, सभी जैन समताधारी एवं सभी बौद्ध राग-द्वेष विजेता बन जाते, किन्तु वस्तुतः ऐसा होता नहीं है। जैसे हर व्यक्ति में अच्छाई-बुराई दोनों होती हैं वैसे हर सम्प्रदाय में अच्छे बुरे लोग होते हैं। किसी भी सम्प्रदाय के न सभी लोग अच्छे हो सकते हैं, न सभी बुरे। परन्तु व्यक्ति साम्प्रदायिक आसक्ति के कारण अपने सम्प्रदाय के हर व्यक्ति को सज्जन और पराए सम्पद्राय के हर व्यक्ति को दुर्जन मानने लगता है। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, यहूदी, जैन और बौद्ध कहलाने मात्र से कोई व्यक्ति सज्जन या दुर्जन नहीं हो सकता। किसी भी सम्प्रदाय का व्यक्ति परम पुण्यवान भी हो सकता है और नितान्त पापी भी। इस समझ के अभाव में और अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए साम्प्रदायिक हिंसा का उद्भव होता है। ... वर्तमान में साम्प्रदायिक दंगे व्यापक स्तर पर हो रहे हैं। जैसे 1984 के सिक्ख विरोधी दंगे और 2002 में गुजरात का नर-संहार, इस बात के परिचायक हैं। इनमें बड़े पैमाने पर जानमाल का तो नुकसान हुआ ही, क्रूरताओं की प्रकृति भी ज्यादा तीव्र और अमानवीय थी। हिन्दू और मुसलमान हों, अथवा सिक्ख, ईसाई, बौद्ध और जैन - इनके बीच किसी भी कारण से उत्पन्न द्वेष एवं हिंसा के वातावरण को कानून-व्यवस्था के द्वारा एक सीमा तक नियन्त्रित किया जा सकता है, किन्तु अन्तर्मन से रही दुर्भावनाओं को चित्त के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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